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________________ 242 आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य गाँधीमहान', भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र' शीर्षक कविता भी प्राप्य है। भक्तिभावना व प्रभु-वंदना, देश-प्रेम की कविताएँ भी उपलब्ध होती है। 'भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र' में कवि कहते हैं भाषा के भण्डार में, भूषण भरे अनेक, बिन्दु भारती माल को, भारतेन्दु भी एक, महि में यों महिमा रही, कवि मांहि हरिचन्द, तारागन विच व गगन में, गून्थो जिमि चन्दा। राजस्थानी भाषा शैली का स्पष्ट प्रभाव इस पद में दिखाई पड़ता है। 'तेजोनिधान गाँधी महान' में कवि भक्तिभावपूर्ण अहो भाव व्यक्त करते हुए लिखते हैं तेजोनिधान गांधी महान। गौरव-गिरि के शेखर स्वरूप। बल प्रकट आत्म के मूर्तिरूप, हो क्षीणकाय, गिरा प्रधान, चिरभासित त्याग विभूतिमान, तेजोनिधान गांधी महान। (पृ. 235) 'प्रगति प्रवाह' में मुनि अमरचन्द, श्री घासीराम, पं० राजकुमार, ताराचन्द 'मकरंद', सुमेरचन्द 'कौशल', बालचन्द्र, हरीन्द्रभूषण, सुमेरूचन्द्र शास्त्री, अमृतलाल, गुलाबचन्द ठाना, डॉ. शंकरलाल, बाबू श्रीचन्द, सुरेन्द्रसागर जैन, ज्ञानचन्द्र जैन और मगनलाल 'कमल' की कविताओं को स्थान दिया गया है। कवियों की संख्या के मुताबिक कविताएँ भी अनेक हैं, लेकिन स्थानाभाव के कारण केवल नामोल्लेख से ही संतोष प्राप्त करना पड़ता है। श्री सुमेरूचन्द शास्त्री ने 'महाकवि तुलसी' को अर्घ्य देते हुए लिखा हैराघव पुनीत पद-पद्म का पुजारी वह, भक्ति मण्डली का एक धीर-वीर नेता था, अटल प्रतिज्ञा में था, अचल हिमालय-सा, ज्ञान कर्म भक्ति की पवित्र नाव खेता था, 'हुलसी' का लाल हिन्द-हिन्दी हिमालय वन, राम-पद-प्रीति का मनोई ज्ञान देता था। (पृ. 153) पं० परमेष्ठिलाल का 'महावीर संदेश' जैन दर्शन की विशेषता प्रदर्शित करता है प्रेमभाव जग में फैला दो, करो सत्य का नित्य व्यवहार, दुराभिमान को त्याग अहिंसक बनो यही जीवन का सार।
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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