SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 248
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 224 आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य करुण चीत्कार सुनाई पड़ती है जो बारातियों के एवं मेहमानों के भोजनार्थ बाड़े में बंध कर रखे गये थे। इस हृदयद्रावक आक्रन्द से नेमिकुमार को भोग-वैभव से घृणा हो गई और संसार के सुखों से वैराग्य आ गया। इस अघटित घटना से नेमिकुमार उसी पल विवाह मंडप की ओर जाने के बदले काफी समझाने बुझाने पर भी अब वे संसार में वापस आने के लिए तैयार नहीं हैं। राजुल यह समाचार सुनकर मूछित हो जाती है और जहाँ थोड़ी देर पहले आनंदोत्सव-मंगलगान और खुशी का वातावरण फैला था, वहाँ अब उदासी और मातम-सा छा गया। माता-पिता अपनी लाड़ली प्राण-प्रिया पुत्री को अन्य स्वरूप सुन्दर राजकुमार से जीवन-सूत्र बांधकर सुखी होने के लिए समझाते हैं, लेकिन राजुल भारतीय आदर्श नारी होने के एक बार जिसे पति स्वीकार कर चुकी है, वह अब दूसरे से शादी करके व्रत भंग कैसे कर पाये। वह तो नेमिकुमार को ही आत्म-समर्पण 'कर चुकी है, सो वह कह उठती हैं रहे कहीं भी किन्तु सदा वे मेरे स्वामी, मैं उनका अनुकरण करूँ, बन पथ अनुगमी। और राजुल दृढ़ निश्चयी हो कामना पर संयम प्राप्त कर आत्म-साधना में लीन होने के लिए नेमिकुमार के मार्ग का अनुसरण करने के लिए गिरनार पर्वत पर चल पड़ती है। उसने अपने भीतर रहे नारीत्व की दीनता-हीनता का त्याग कर उदास दृष्टि-कोण से समग्र विश्व के सुख-कल्याण की कामना के लिए स्वस्थता व दृढ़ता का संचय किया। वह स्वयं को त्याग-तपस्या के लिए नेमिकुमार के प्रति उसके स्नेह-कामना या वासना की जगह पवित्रता, उदात्त और भक्ति-भाव की लहर फैल गई है। वह कहती हैं तुमने कब तुझको पहिचाना देखा मुझको बाहिर से ही, मेरे अन्तर को कब जाना। नारी ऐसी क्या हीन हुई। तन की कोमलता ही लेकर नर के संमुख क्या दीन हुई। राजुल के कथन में आक्रोश, स्वाभिमान व नारी के प्रति पुरुष की लघुता वृत्ति से उत्पन्न फरियाद वृत्ति भी लक्षित होती है। 'साकेत' की उर्मिला या यशोधरा की शिकायत में भी स्वगौरव-रक्षा का स्वर सुनाई पड़ता है। समीक्षा : __ कवि की प्रथम कृति होने पर भी राजुल व नेमिकुमार के हार्दिक भावों एवं क्रियाओं का तादृश्य मार्मिक चित्रण किया है। प्रथम मिलन की बेला में
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy