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आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
इस प्रकार पाँच सर्ग में विभक्त "विराग" की प्रधान घटना कुमार के अविवाहित रहने की है, जिसको कवि ने विविध भावों, विचारों, द्वन्द्व, दार्शनिकता आदि से भावपूर्ण शैली में अंकित किया है। कथा का सूत्र तो बिल्कुल सूक्ष्म है, भावानुभूतियों का क्रम प्रगाढ़ है। राग-विराग का द्वन्द्व चित्रित करने का कवि का प्रमुख प्रयोजन है, जिसमें राग की पराजय होती है और 'विराग' विजयी होता है। 'विराग' काव्य के कुमार महावीर सभी रागों, वैभवों व वृत्तियों को त्याग कर उस राह की ओर चल पड़े, जहाँ मनुष्य त्याग, करुणा, प्रेम व अहिंसा के शस्त्र से विजयी बनने में समर्थ हो सकता है। कवि कुमार के निश्चय को व्यक्त करते हैं
फिर गृह से बाहर निकले वे मोक्ष मार्ग के नेता। सेना-धन-शस्त्र बिना ही, बनने को विश्व-विजेता।"
उपर्युक्त रूप से 'विराग' खण्डकाव्य में वर्धमान के दृढ़ निश्चय, त्याग-वैराग्य की अनुपम भावना तथा माता-पिता की हार्दिक अनुभूतियों का कवि ने सुन्दर भावपूर्ण शैली में चित्रण किया है। समीक्षा :
कथावस्तु के अन्तर्गत कुमार वर्धमान की वैराग्य पूर्ण मन:स्थिति का कवि ने अच्छा उद्घाटन किया है। कुमार के अविवाहित रहने की घटना को कवि ने आधार बनाया है। भगवान महावीर के जीवन का एक अंश ऐसा लिखकर कवि ने स्वयं एक प्रेरक घटना का संकेत किया है। मानसिक द्वन्द्व, चाह, आशा-निराशा, समझौता, वाद-प्रतिवाद आदि भावों का अंकन कवि ने रोचक संवादों के माध्यम से किया है। इसमें तत्कालीन राजकीय, धार्मिक व साद्भमाजिक परिस्थितियों पर भी प्रकाश डाला गया है। इसके साथ-साथ कवि ने आधुनिक युग की सभ्यता-संस्कृति, राजकीय व धार्मिक नेताओं पर परोक्ष रूप से व्यंग्य कर लिए हैं। कवि केवल धार्मिक सीमाओं में ही आबद्ध नहीं रहे हैं। वे आधुनिक वातावरण से पराङ्मुख नहीं हुए हैं। कुमार महावीर के मुख से नारी की दयनीय स्थिति, सर्वत्र शस्त्रों की होड़, भोग-वैभव के लिए स्पर्धा आदि का अच्छा निरूपण 'विराग' खण्ड काव्य में हुआ है। कवि वर्तमान परिस्थितियों से काफी प्रभावित है, जो सर्वथा उचित भी है। प्रथम, द्वितीय और 1. द्रष्टव्य-धन्यकुमार जैन रचित 'विराग' पंचम सर्ग, पृ० 62.