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आधुनिक हिन्दी जैन काव्य : विवेचन
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'वीरायण' का वस्तु-वर्णन :
'वीरायण' में प्रस्तुत रसों की चर्चा के उपरान्त इसमें उपलब्ध विविध वर्णनों के विषय में भी विचार कर लेना प्रासंगिक होगा। इसके विषय में कवि के संयमी, वीतरागी नायक के कारण विशिष्ट सीमा में आबद्ध रहना पड़ा, लेकिन काव्य के अन्तर्गत नगर, महल, नदी, वन-उपवन, जलाशय, सूर्योदय-संध्या, रत्नाभूषणों के आकर्षक वर्णनों के द्वारा कवि ने काव्य में रोचकता भरने का प्रयास किया है। 'वीरायण' में मूलदास जी ने विविध वर्णनों में भव्यता भर दी है, विशेषकर वन-उपवन के दृश्यों में तथा युद्ध के वर्णनों में तीव्रता व ओज है। कवि ने युद्धभूमि व सैन्य का वास्तविक वर्णन कर जीवन्तता मूर्तिमन्त कर दी है। उसी प्रकार प्रियमित्र चक्रवर्ती की विजय पताका का वर्णन भी आकर्षक है। वर्द्धमान-यशोदा के विवाह समय विविध रत्नाभूषणों एवं कीमती वस्त्रों के वर्णन में कवि की एतद्विषयक रुचि-परिचय मिलता है।
प्रथम काण्ड में जयन्तिपुरी नगरी का कवि ने सुन्दर वर्णन किया है महल, वन-उपवन, जलाशय, नदी अट्टालिकाएँ, छोटे-छोटे पर्वत आदि से आवेष्टित यह नगरी समृद्धि से भी पूर्ण थी। इसका एक चित्र देखिएसर सरिता कूप वापि घनेरे, वरणि न जाय देख मन हेरे। रुचिर गिरीवर सोहत कैसे, क्षिति रमणी कबरी कुच कैसे॥ 1-32॥ पावन सुरसरि वहाँ चलि जाई, दर्शहुते जनके जय आई। नाना तरुवर सुंदर बागा, सोहत नगर समीप अधामा॥ 33॥ विविध भाँति पंकज सर खीले, श्याम सफेद अरुण अरु नीले। गुंजत भंग मधुर सुर कैसे, सुर गंधर्व गवैयन जैसे॥ 34॥ सुंदर महल अटारि हवेली, विश्वकर्मा ने स्वयं रचेली बिचबिच नगर सुहावे फुवारा, रासे रवि कित प्रजा अपारा॥ 37॥
भगवान महावीर की जन्मभूमि क्षत्रिय कुण्ड नगरी की संपति में वर्द्धमान के जन्म के बाद वृद्धि होती गई, इस बुद्धिमान श्री सौंदर्य का कवि ने अत्यन्त संक्षेप में वर्णन किया है। वर्द्धमान के ब्याह के समय समवीर महाराज ने बारातियों को पहरावनी में दिये रत्न-आभूषण, वस्त्र, हाथी-घोड़े, मेवा-मिठाई आदि का कवि ने विस्तृत वर्णन किया है-यथा-.
इस बिच मंगल चारि सुचारु, भये पूर्ण जग जस व्यवहार।
मुगट सुकुंडल ककन, बाजुबन्ध बलहार सुकंचन॥ 291॥ 1. द्रष्टव्य-कवि मूलदास कृत-'वीरायण', प्रथम खण्ड, पृ० 7-8.