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________________ 206 आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य मजबूरन उसे संयम-ग्रहण के लिए इजाजत देनी पड़ती है। कवि ने वात्सल्य रस की भाँति यथावसर करुण रस की झांकी कराने का भी सुन्दर प्रयास किया है। चन्दनबाला की उपकथा में करुण रस की मार्मिक अभिव्यक्ति कवि ने की है। एक राजकुमारी को परिस्थिति वश किन-किन दशाओं से, कैसे-कैसे लोगों से गुजरना पड़ता है। अनेकानेक कष्टों के बावजूद भी वह शान्त, क्षमाशील एवं करुणापूर्ण हृदय से सब कुछ सहन करती किसी को दोष न देकर अपने पूर्व जन्म के कर्मों का फल समझकर धैर्य से सब सहती है। माता धारिणी देवी की मृत्यु के बाद सिपाही उसे श्रेष्ठि को बेच देता है निज घर त्रेष्टि पर जाना, जननि जनक दंपति को माना। अपने गुम शील विनय प्रभावा, श्रेष्ठि घर सम्मान बढ़ावा॥ मधुर वचन शीतल बिमि चन्दन, परिवजन मन को करती रंजन। सौरभ चन्दन सम फैलाया, नाम चन्दना सब ठहराया।। 3-341॥ लेकिन ईर्ष्यावश मूला सेठानी उसकी क्या अवदशा कर देती है। सेठ के बाहर जाने पर बाल काटकर, मुंडन कर हाथों-पैरों में जंजीर डालकर एक वस्त्र पहनाकर तलघर में डाल देती है और खुद मैके चली जाती है। तीन दिन बाद वापस आने पर सेठ ने चन्दना के विषय में बार-बार पृच्छा करने पर वृद्धा दासी से उसका हाल मालूम हुआ द्वार खोल जा सेठ निहारे, शिर मुंडित पद जंजीर भारे। क्षुधा पीड़ित तन कान्ति हीना, कंपति हरनी समहवे दीना। कुसुम माल करमाई दिखाती, पेखत फरत वज्र सम छाती। अश्रु प्रवाह बहे दुहु नैना, सेठ देख कछु बोल सके ना॥ 353-7॥ उसी प्रकार भगवान के दोनों कानों में काश की सलाका ग्वाले ने निर्दयता से भींच कर उसके दोनों छोर को मिलाकर लहू-लहान कर दिया था, फिर भी भगवान तो 'काउससत्र' की स्थिति में होने से कुछ बोले-चाले नहीं और कष्टनीय पीडा को सहते रहे। कुशल वैद्य के द्वारा जब तेल-मर्दन के द्वारा उस तीक्ष्ण सलाकाओं को बाहर निकालने का उपक्रम किया जाता है तो धैर्य धीरज एवं अडिगता के मूर्ति समान प्रभु से गगनेभेदी चित्कार निकल जाती है और आस-पास के सभी लोगों के हृदय करुणा से द्रवित हो गये। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि 'वीरायण' काव्य में रसों का विधि वत रूप उपलब्ध नहीं है, लेकिन रसों का प्रारंभिक स्वरूप ही कवि ने व्यक्त किया है। शान्त रस के साथ श्रृंगार, वीर व करुणा रस के छींटे अवश्य प्राप्त होते हैं।
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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