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________________ 204 आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य भयानक रस की तरह कवि ने वीर रस का भी सुन्दर सादृश्य चित्रण किया है। कवि स्वयं प्रेरक (चारण) होने से स्वभावगत वीर रस का परिपाक उमंग के साथ हो सका है। महावीर के पूर्व-भव त्रिपृष्ट के अवतार में कवि को वीर रस का उत्साह-प्रेरक, फड़कता चित्रण करने का अच्छा मोका मिल गया है, क्योंकि त्रिपृष्ट-पद पर प्रतिष्ठित होने से सभी बड़े-बड़े राजाओं से युद्ध करके विजय प्राप्त किये। ऐसे युद्धों के वर्णन में, वीर रसोत्पादक प्रसंगों में कवि को अपेक्षाकृत विशेष सफलता प्राप्त हुई है। युद्ध-भूमि का सजीव वर्णन देखिए उमकंत ढोल त्रंबालु भेरी, घेरि गहवर गावहिं। तडतड निनाद तुरीन के, 3 3 नगारे बाजहीं। 1-194॥ घुनि शंख की सुनि जात ना, डर सात कायर भागहिं। हाँ, हाँ-मरे, हाँ-हाँ मरे, बचहीं न कोउ इलाजहिं॥ 2-195॥ युद्धभूमि में शस्त्रों के वर्णन में भी झंकार की ध्वनि, नाद-सौंदर्य, कवि ने प्रकट किया है। कवि की बानी में किस प्रकार का युद्ध हो रहा है, उस चित्र को देखिए असि बान के कमान कर पर, घर समर में बिचरे। पद चर लरत पदचरन से, हयस्वार हथदल से लरे। रथि साथ महारथि आभिरे, गजदल सु गजदल आथरे। रूद्र मुण्ड प्रचण्ड नाचत, गिरत शिर जिन धड़ लरे॥ 2-196॥ गजदन्त से गजदन्त लागत, अनल कण दरसात यों, घर्षत बादल प्रगट झषकत, झके झलक विद्युत ज्यों। मातंग गण्डस्थल फेरत, उछलत रुधिर प्रवाह क्यों, महि फार डार बाहर निकसन, अद्रिसे जलवार ज्यों। 197॥ वात्सल्य रस का वर्णन भी कवि ने सुन्दर भावपूर्ण किया है। गर्भ में बालक मातृ-प्रेम के कारण हलन-चलन की क्रिया बंद कर देता है, जिससे त्रिशला रानी बेचैन हो जाती हैं, विलाप करती हैं, अपने भाग्य को कोसती हैं। राजा सिद्धार्थ भी दुःखी होते हैं। पूरे राजभवन में सन्नाटा छा जाता है रानी के दुःख का कोई पार नहीं है। कवि ने इन हृदयद्रावक भावों का सुन्दर मर्मस्पर्शी वर्णन किया है माता मन विस्मय भयो, गयो गर्भ निज जान। नष्ट भयो की अपहर्यों, बेबश कुमतीमान॥ 3, 81॥ म्लान भया मन चिंता व्यापी, पुन्यहीन नहीं पावकदायी। रत्न रंक-घर रहें न कैसे, कृपन किरत झट नासत तैसे॥ 3-83॥
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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