SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 226
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 202 आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य यशोदा के रूप-सौंदर्य का ही केवल वर्णन कर दिया है तथा उसे राजकुल की स्त्रियां कैसे सजाती हैं, इसकी चर्चा की गई है। यशोदा रत्नाभूषण से किस प्रकार सजाई जाती है इसका एक चित्र द्रष्टव्य है मिल अंतःकुल चतुरा नारी, कन्या यशोदा कुं सिंगाारी। कंचुकी पंच रत्न पहनाई, कंचन मेखला धराई॥ 3-285।। नवसर हार कंठ सोहे कस, बदन चन्द संमुख तारा जस। अलतायुक्त रक्त चरनों की, अंगुलि नतयुति ज्यों रतनों की॥ 286॥ कमलनाल सम दुहुँ कर भासे, दशांगुली मुद्रिका प्रकाशे। संग सहेलिन सोहत कैसी, नभ गुलाल बीच चपला जैसी। 3-887॥ इसी प्रकार व्याह के बाद नव-दंपत्ति विविध प्रकार के आनन्द मंगल में दिन व्यतीत करते हैं, इसका वर्णन उपलब्ध है। इसको भी उदात्त संयोग-शृंगार पक्ष का एक पहलू मात्र ही समझना चाहिए। वर्द्धमान कुंवर और रानी यशोदा आनंद से दिन गुजारते हैं, इसका एक उदाहरण देखिएवर्द्धमान कुंवर अरु रानी, बितावत दिन दंपति ज्ञानी। कयहुंक नृत्यांरभ, सुने-रागिनी वाला॥ 3-328॥ रुचिर बाग फल-फूल निहारत, क्षिति सौंदर्य देख दिल ठारत। इस बिध दिल अपना बहेलाका, निशि-वासर जानत नहि बाता। 337॥' वर्द्धमान-यशोदा की शिशु-सुची, प्रियदर्शना के रूप-लावण्य, चारुता व कोमलता का कवि ने सुन्दर वर्णन किया है। इसको शृंगार रस-की निष्पत्ति स्वरूप न कहकर केवल रूप वर्णन मात्र कह सकते हैं। प्रियदर्शना की रूप-छवि देखिए इस्त चरण कोमल अंबुज सम, संन्दर अवयव ओपन अनुपमा कोटि लक्ष्मी सम तेज निधाना, ठन समान कहि जात न जाना॥ शुक्ल शशि सम वृद्धि पावे, दिन दिन प्रति अति कान्ति सुहावे। हंसी अरु गजगामिनी बाला, बिम्ब फल अधर रसाला॥ 335॥ चीबुक गोल कपोल सुग्रीवा, बरनि न जात अनुप रूप सिवा। बचन मधुरे प्रिय भाखे, प्रियदर्शना नाम इन राखे॥ 3-336।। इस प्रकार 'वीरायण' भगवान महावीर की जीवन कथा से सम्बंधित महाकाव्य होने से श्रृंगार रस का पूर्ण रूप उपलब्ध नहीं हो सकता। मूलदास जी ने महावीर को विवाहित स्वीकारा है, अतः उनकी दीक्षा के उपरान्त यशोदा के विरह-वर्णन का अवसर प्राप्त हो सकता है। लेकिन जैन धर्म के दर्शन ग्रन्थों 1. द्रष्टव्य-कवि मूलदास कृत-'वीरायण', तृतीय खण्ड, पृ० 224.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy