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________________ आधुनिक हिन्दी जैन काव्य : विवेचन आलोचना - विवेचना का प्रश्न ही पैदा नहीं हो सकता। कवि ने द्वितीय काण्ड में राजकुमारी मृत्रावती के उन्मुक्त रूप सौंदर्य के वर्णन में श्रृंगार का विनियोजन किया है। इसका एक दृष्टान्त देखिए भाल विशाल बिंदि लघु किन्ही, उडुगन चमकत लिन्हीं । लोचन ललित रंग अंजन युक्त सुहावत कारे ॥ 2-16॥ उस पै उरोज विराजत कैसा, उलट अनंत नगारन जैसा । तब उन्नतपन मानहु पाई, हार- भार तैं दबि लघुताई ॥ 17 ॥ विलग होई लट एक अलक की, आई कपोलन उपरि झलकी ॥ शोधि साम्य कहते कवि कैसी, मदन मृदुल कर घर अखि जैसी । नाजुक चिबुक उपरि तिल सोहे, शकहि आदि उपमा कवि को है ॥18॥ (दोहा) साज सिंगार सबे बेणी, चितवनि चारु चकोर । चंचल द्रगी कुरंगिशी, अनुपम अंग भरोर ॥19॥' 201 यहाँ मृगावती रानी एवं भद्रा देवी की कथा में कवि से गंभीर क्रम भंग हो गया है, जिसकी चर्चा यहाँ अनुपयुक्त है। भगवान महावीर के पूर्व जन्मों की कथा के अंतर्गत त्रिपृष्ट वासुदेव की कथा महत्वपूर्ण है। उनकी माता रानी मृगावती के देह-सौंदर्य का चित्र खींचकर कवि ने शृंगार के एक पक्ष का वर्णन किया है। मृगावती रानी के सौंदर्य वर्णन में अश्लीलता या कामुकता नहीं आने पाई है। कवि ने पूरा-पूरा नख - शिख वर्णन इस सर्ग में किया है, जो परम्परायुक्त होने पर भी आकर्षक है। उसी प्रकार त्रिपृष्ट के देह-सौष्ठव का भी कवि ने सुंदर चित्र उभारा है:-यथा नील कंजसम सुहल शरीरा, नसवुति मानहु उज्जवल हीरा । मरित कपोल गोल अरुणारे, कंठ सुललित कम्बु अनियारे ॥ पूर्ण चन्द्र आनन छवि छाये, देखत काम कोटि लजवाये । नंदन पद्म शुभ प्रकाशवंता, कुंचित केश कृष्ण सोहंता ॥ कवि ने शृंगार रस का विनियोजन केवल रूप - वर्णन में ही किया है। उदात्त, उन्मुक्त प्रणय, रस पूर्ण दाम्पत्य जीवन या संयोग-वियोग श्रृंगार के अन्य पक्षों का उभार ‘वीरायण' में प्राप्त नहीं होता है। राजकुमारी यशोदा के साथ विवाहोपरान्त भी दंपत्ति के प्रेमपूर्ण आलाप - संलाप, उत्तेजक चेष्टाएँ या व्यवहार, रानी के उन्मादक सौंदर्य आदि के वर्णन को धीर-गंभीर - वैरागी महावीर नायक होने के कारण त्याज्य समझकर छोड़ दिया है। लेकिन यहाँ महावीर को अविवाहित ही बताया होता तो यह प्रश्न ही नहीं खड़ा होता । कवि ने इसमें भी 1. द्रष्टव्य-कवि मूलदास कृत - 'वीरायण', द्वितीय सर्ग, पृ० 63.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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