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________________ आधुनिक हिन्दी जैन काव्य : विवेचन कथा वस्तु में रोचकता बराबर बनी रहती है। कवि मूलदास जी ने काव्य को सात काण्ड में विभक्त किया हैं कवि ने महाकाव्य के प्रारंभ ' श्री वीरायण महाकाव्य' के अंतर्गत सरस्वती वंदना, कवि मर्यादा, सज्जन- प्रशंसा तथा दुर्जन- निंदा के अनन्तर सात काण्डों का संक्षिप्त उल्लेख किया है :-यथा 195 प्रथम काण्ड नयसार बनाया, धर्म गृहस्थिन का समझाया। चक्रवर्ती वासुदेव विक्रम, द्वितीय काण्ड में दिये अनुक्रमा॥11॥ तृतीय काण्ड नृप - नन्दन वासा, वीर जन्म विवाह ही भाखा । वर्धमान वैराग्य बताया, देव विमान परस हित आया ॥ 12 ॥ चतुर्थ काण्ड शूलपाणि व्यंतर, चण्ड कौशिक अहि कथा विस्तार । विद्या सिद्धि योगिनी बाता, चारण मुनि उपदेश प्रतापा ॥ 13 ॥ पति -पत्नी व्रत पंचम बलानी, सूरसेन रत्नावली रानी ॥ लट काण्डे सति चन्दन बाला, वीर अभिग्रह कथा रसाला । गौतम अरु गुरुवर का ज्ञाना, काण्ड सप्तमे मृग कल्याना ॥ 14॥ सप्त काण्ड रूप रतन अनुपम, उनसे गूंथी माला उत्तम । श्रद्धावन्त सुजन पहरेंगे, बडरी संमुख नहीं ठहरेंगे। 15-1॥ उपरोक्त रूप से कवि ने सातों काण्डों का संक्षिप्त दिग्दर्शन कराया है। प्रथम व द्वितीय काण्ड के अन्तर्गत भगवान महावीर के पूर्व जन्मों में से प्रमुख जन्मों की कथाओं का कवि ने विस्तृत वर्णन किया है। तीसरे काण्ड में भी नन्दन राजा के रूप में महावीर की पूर्वजन्म कथा चलती है, बाद के अवतार में ये तीर्थंकर बने। यदि इतने विशाल सर्गों में ये कथाएं न रखकर केवल एक सर्ग में ही संक्षेप में प्रमुख पूर्व जन्मों का उल्लेख कर दिया होता तो भी काम चल जाता। उसके साथ ही मुख्य कथा पर विशेष ध्यान दिया जा सकता और प्रमुख कथावस्तु, कौमार्यावस्था, विवाह, संसार से वैराग्य, दीक्षा - निर्णय, दीक्षा महोत्सव एवं प्रारंभिक परिभ्रमण की महत्वपूर्ण घटनाओं को कवि ने एक सर्ग में ही सम्मिलित कर दिया है। यहाँ 'वीरायण' के मुख्य काण्ड का क्रमानुसार उल्लेख समुचित प्रतीत होता है। - कवि मूलदास जी ने 'श्री वीरायण महात्म्य' के अनुसार प्रथम और द्वितीय काण्ड में भगवान महावीर के 27 पूर्व जन्मों में से मुख्य-मुख्य जन्मों की कथाओं का रसात्मक वर्णन किया है। इन कथाओं का अति विस्तृत रूप मुख्य कथा प्रवाह को स्थगित -सा कर देता है। तृतीय काण्ड में महावीर जन्म कथा प्रारंभ होती है। जन्म से पहले गर्भ परिवर्तन, इन्द्र व देवों द्वारा माता त्रिशला की स्तुति-वंदना, गर्भ-परीक्षण, चौदह स्वप्न एवं उनका फल - महात्म्य आदि के
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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