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________________ आधुनिक हिन्दी - जैन साहित्य रहता। लेकिन कथावस्तु के सातत्य एवं ऐतिहासिकता के दृष्टिकोण से इनमें क्रमबद्धता अपेक्षित रह सकती है। भगवान महावीर का जीवन-वृ पौराणिक या काल्पनिक न होकर इतिहास - सिद्ध है। फलस्वरूप ऐतिहासिक क्रम-भंग को निवाहने में कवि को सतर्क रहना चाहिए। 194 'वीरायण' की कथावस्तु के संगठन में प्रायः शिथिलता मिलती है। दीक्षा के अनन्तर महावीर के विविध चातुमार्स के समय ज्ञातखण्ड उपवन, नगर, नदी, आश्रमादि स्थलों के साथ पूर्व जन्मों की कथा के अन्तर्गत प्रमुख कथाओं की विस्तृत वर्णन प्रणाली से भी मुख्य कथा प्रवाह में बाधा पैदा होती है। स्वतंत्र कथाओं के रूप में सोमप्रभ विप्र, गोभद्र ब्राह्मण, रत्नावली, मृगावती, योगिनियों-व्यंतरों, गोपाल तथा चण्डकौशिक की कथा अवश्य रोचक है। लेकिन महावीर से सम्बंधित महाकाव्य में इन सब का विस्तृत विवेचन न तो अपेक्षित है और न ही सहायक। केवल महावीर से सम्बंधित मुख्य-मुख्य प्रसंगों व पात्रों को कवि ने कथासूत्र में पिरोया होता तो कथा वस्तु के संगठन में सुष्ठुता आ जाती व अधिक प्रभावशाली प्रतीत होता । बृहत्काय काव्य 'वीरायण' में संपूर्ण कथा वस्तु का विस्तार पौराणिक ढंग से किए जाने के कारण कहीं-कहीं यह महाकाव्य की गरिमा से युक्त नहीं प्रतीत होता, बल्कि चरित-काव्य-सा हो जाता है। लेकिन सर्वत्र यह बात नहीं दिखाई देती । तृतीय काण्ड में महावीर की बाल्यावस्था, विवाह, दम्पत्ति की दिनचर्या, दीक्षा का निर्णय एवं महोत्सव, बारह वर्ष की दीर्घ तपस्या व कष्टों की कथा में प्रवाह बराबर बना रखा है। मूलदास जी का श्वेताम्बर सम्प्रदाय के सिद्धान्तों पर विश्वास रहा होगा, ऐसा प्रतीत होता है, क्योंकि दिगम्बर सम्प्रदाय के अनुसार भगवान महावीर को अविवाहित न मानकर उन्होंने महावीर के विवाहोत्सव का विस्तृत तथा सुन्दर वर्णन किया है। समरवीर राजा की पुत्री यशोदा से महावीर का ब्याह आनंद-उल्लास से संपन्न होता है। पुत्री प्रियदर्शना के जन्मोत्सव व रूप-लावण्य का भी कवि ने ललित वर्णन किया है । कवि ने कथा वस्तु के लिए पूर्णरूपेण श्वेताम्बर सम्प्रदाय के दर्शन-ग्रन्थों का आधार ग्रहण किया है। जिस प्रकार कहीं-कहीं जैन दर्शन की परिपाटी का भी पूर्णत: अनुसरण कवि से नहीं हो पाया है, वहाँ कवि ने जैन दर्शन के सामान्य सिद्धान्तों का यथोचित सन्निवेश प्रस्तुत काव्य में किया है । कथावस्तु में विविध विशद् वर्णनों एवं पग-पग पर आनेवाली छोटी-मोटी कथाओं से कवि के तद्विषयक ज्ञान का अवश्य पता चलता है, किन्तु कथा के प्रवाह में इससे कभी-कभी बाधा पड़ती है। इन क्षतियों-शिथिलताओं के बावजूद भी 'वीरायण' महाकाव्य की
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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