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आधुनिक हिन्दी जैन काव्य : विवेचन
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चातुर्मास के लिए ठहरे थे, वहाँ निकट ही औदिच्य ब्राह्मणों की बाडी में रामानंदी संप्रदाय की और रामायण प्रचार समिति द्वारा प्रभात फेरी में तुलसी रामायण के दोहे-चोपाई का मधुर स्वर में पठन-पाठन-कीर्तन किया जाता था।' इससे अत्यन्त प्रभावित होकर मुनि श्री ने सोचा कि 'मानव' राम को 'दैव' राम बनाने में तुलसी की रामायण का कितना बड़ा हाथ है। यदि उसी ढंग से भगवान महावीर की वैराग्य जीवनी एवं उनके तीर्थकरत्व को गेय छन्दों में आबद्ध किया जाय तो पठन-पाठन की सुविधा से घर-घर में उसका प्रचार-प्रसार किया जा सकता है। इससे जैनेत्तर समाज में कम प्रसिद्ध महावीर चरित्र को लोकप्रिय बनाया जा सकता है। राम को अनन्त शक्तिशाली विष्णु के अवतार-रूप में उत्तर भारत के प्रत्येक आवास में प्रस्थापित व पूजित करवाने का संपूर्ण श्रेय तुलसीदास जी को दिया जाता है, यदि तुलसी न होते तो शायद राम भी भगवान राम के रूप में जनता के हृदय-सिंहासन पर बिराजने का उज्जवल स्थान शायद प्राप्त न कर पाते। इस तथ्य पर से छोटेलाल जी महाराज को 'रामायण' की तरह 'वीरायण' की रचना के लिए प्रेरणा मिली, किन्तु स्वयं हिन्दी भाषा वह महाकाव्य की शैली से अनभिज्ञ होने से उनके अनुयायी मूलदास जी को प्रेरणा व प्रोत्साहन दिया। क्योंकि रामानंदी संप्रदाय के साधु मूलदास जी को ब्रज-अवधी का ज्ञान था तथा इसी भाषा शैली में छोटी-छोटी रचनाएँ उन्होंने छोटेलाल जी को पहले सुनाई थीं। मूलदास जी ने जैन मुनि के आदेश को ग्रहण कर काव्य का प्रारंभ करने से पूर्व जैन धर्म के दार्शनिक ग्रन्थों और परम्परागत विशेषताओं का गहरा अध्ययन किया। छोटेलाल जी से प्रेरणा ग्रहण कर महाकाव्य की रचना संभव हुई। अतः स्वाभाविक है कि तुलसीदास की मधुर प्रभावोत्पादक भाषा-शैली और भक्तिपरक विचारधारा का प्रभाव अन्य कवियों की तरह मूलदास जी पर भी होगा। किसी पूर्ववर्ती महाकवि से प्रेरणा या प्रभाव ग्रहण करना साहित्य जगत की एक परम्परा सी है। 'वीरायण' में कवि ने प्रभु महावीर के दिव्य जीवन 'केवल ज्ञान' 'मोक्ष' व 'उपदेश' को मार्मिक व रोचक भाषा-शैली में विवेचित किया है। कथावस्तु का विवेचन करने से पूर्व संक्षेप में 'वीरायण' का रचना-काल एवं कवि की स्व-लघुता के संदर्भ में भी उल्लेख आवश्यक बना रहता है। 'वीरायण' का रचना काल और कवि का स्व-लघुता वर्णनः
'वीरायण' महाकाव्य की रचना का समय कवि ने स्वयं सप्तम कांड के अन्त में निर्देशित किया है-यथा1. द्रष्टव्य-छोटे लाल जी महाराज लिखित 'श्री वीरायणनी रचना'-गुजराती, भूमिका,
पृ० 7.