________________
190
आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य तुरन्त लाती हिचकी दिनान्त है, स-वेग आती फिर मृत्यु यामिनी। पृ. 98-308-95
इस प्रकार का जीवन-दर्शन पूरे दसवें सर्ग में दृष्टिगत होता है। जीवन सत्य का भी कवि उत्तम मार्ग इसी सर्ग से निर्दिष्ट करते हुए जीवन-मृत्यु की विशद्ता का निरूपण करते हैं। अनूप जी ने अपने काव्य में अत्यन्त व्यापक भावभूमि पर अपने जीवन दर्शन की अभिव्यक्ति की है। जीवन के लोक और परलोक दोनों पक्षों पर उनका ध्यान रहा है और दोनों की विस्तृत परिधि में उनकी मर्मस्पर्शिनी दृष्टि पहुँची है। उनके जीवन दर्शन में सांसारिक जीवन की सफलता का रहस्य अत्यन्त सरल ढंग से समझाया गया है। वे जीव जगत की यथार्थता से मुख नहीं मोड़ना चाहते और न मानव-जीवन को पलायनोन्मुखी बनाना चाहते हैं।' __इस प्रकार आधुनिक हिन्दी जैन महाकाव्यों में रस, नेता, कथावस्तु, जीवन-दर्शन आदि दृष्टिकोणों से 'वर्द्धमान' का न केवल महत्वपूर्ण स्थान है, बल्कि जैन धर्म स्वयं गौरवान्वित हो सकता है, क्योंकि हिन्दी जैन साहित्य में कथा-ग्रन्थ, निबंध साहित्य अथवा दार्शनिक तत्वज्ञान के ग्रन्थ और चरित ग्रन्थ-विशेष कर महावीर के जीवन सम्बंधी-बड़ी संख्या में दृष्टिगत होते हैं, जबकि महाकाव्यों की संख्या अत्यन्त अल्प है। 'वर्द्धमान' की चर्चा अनन्तर दूसरे महाकाव्य 'वीरायण' का अनुशीलन भी अपेक्षित हैवीरायण :
__दोहा-चौपाई शैली में ब्रज-अवधी मिश्रित भाषा में रचित-'वीरायण' महाकाव्य कवि मूलदास की यश-पताका का मानदण्ड है। यह ग्रंथ अभी तक विद्वानों द्वारा समीक्षित नहीं हो सका है। प्रयोजन व प्रेरणा :
महाकवि तुलसीदास जी के जन प्रसिद्ध महाकाव्य रामचरित मानस की भव्यता और लोकप्रियता से प्रेरित हो यह महाकाव्य रचा गया। 'रामचरित सानस' की मधुर भाषा शैली व राम-गुण कीर्तन से प्रेरित होकर सदानंदी पंथ के जैन साधु छोटेलाल जी महाराज ने 'फला' निवासी चारण कवि मूलदास जी को यह काव्य लिखने की प्ररेणा दी। अहमदाबाद के जिस उपाश्रय में वे
1. डा० रामगोपाल शर्मा : अनूप शर्मा, कृतियां और कला- अन्तर्गत निबंध ___-महाकवि अनूप का जीवन दर्शन, पृ० 176. 2. द्रष्टव्य डा० नटवरलाल व्यास 'गुजरात के कवियों की हिन्दी साहित्य को देन'
पृ० 122