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________________ आधुनिक हिन्दी जैन काव्य : विवेचन प्रकृति-क्रम के साथ मानव जीवन की तुलना करते हुए कुमार सोचतें मनुष्य वालाएण-सा उगा, जगी फ्योज - नैत्रा - सरसी प्रसन्निता, प्रगल्भता - प्राप्त हुआ कि आ गयी समेण - सन्ध्या एण में षिष्णता । ' कवि की कल्पना का चमत्कार सोलहवें सर्ग में दिखाई पड़ता है, जहाँ 'केवल ज्ञान' प्राप्त करने के बाद कुबेर का रथ महावीर की आत्मा को लेने आता है। उड़ते हुए रथ से नीचे पृथ्वी की शोभा का वर्णन भी मिलता है और देवलोक का भी भव्य वर्णन चलता है प्रवृत्त नीराजन में भू-चक्र था, स्फुलिंग - लीलायुत घुमकेतु था। कला दिखाती बहु नृत्य की मुदा, मया, विशाखा, कृतिका, सरोहिणी । 183 यत्र-तत्र कितने स्थलों पर महाकाव्य में प्रकृति का प्रेरणाप्रद और चिंतनात्मक वर्णन उपलब्ध होते हैं। डा० वीणा शर्मा इस सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त करती है कि “महाकाव्य शैली के अनुकरण में इसमें अनेक वर्णनों का विनिवेश हुआ है। वर्णन जीवन से भी सम्बन्धित है और प्रकृति से भी । मनुष्य की अन्तः प्रकृति भी उपेक्षित नहीं हुए है। सिद्धार्थ के यज्ञ, त्रिशला के रूप और गुण तथा बसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद् आदि ऋतुओं के वर्णनों से यह रचना सजीव हो उठी है" 12 उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि प्रकृति के सुरम्य, कोमल स्वरूप को जितना स्थान मिला है, उतना ही उसके चिन्तन- प्रद व रहस्यात्मक स्वरूप को भी कवि ने अपनी उद्देश्य पूर्ति के लक्ष्य में समाविष्ट किया है। पूरे महाकाव्य में प्रकृति के भिन्न-भिन्न अंगों व स्वरूपों का आलम्बन व उद्दीपन रूप में वर्णन कर महाकाव्य को आकर्षक बनाने के साथ प्रकृति वर्णन के द्वारा कथावस्तु की सूक्ष्म डोर को पुष्ट कर पाठक को उसकी कमी नहीं महसूस होने दी है। 'वर्द्धमान' काव्य में प्रतिबिम्बित दर्शन : 'वर्द्धमान' महाकाव्य में भगवान महावीर का संपूर्ण जीवन अंकित है, 1. अनूप शर्मा - 'वर्द्धमान', पृ० 322-28. 2. डा. वीणा शर्मा - आधुनिक हिन्दी महाकाव्य पृ० 45.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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