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________________ 182 आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य सुभांबरा, गुप्त वयोचर प्रभा। लगी नवोढ़ा-सम शारदी निशा। 'अनूप शर्मा' को हरिय 'पद्धति इतनी अधिक प्रिय थी कि उन्होंने छायावाद के मानवीकरण का प्रयोग नहीं किया है। प्रकृति दर्शन का, मन पर पड़ने वाले प्रभावों का भी वर्णन बहुत कम है। प्रेम के प्रसंग में कहीं-कहीं मन की आसक्ति का वर्णन अवश्य मोहक बन पड़ा हैलगा रहूँ यावक तुल्य पांव में, रचा रहूँ आननमध्य पान-सा। प्रेम और प्रकृति के विवरणों का इस काव्य के पूर्वार्द्ध में अमित विस्तार मिलता है, यहाँ तक कि कथासूत्र अत्यधिक मंथरता के साथ आगे बढ़ता है-अष्टम सर्ग में महावीर का जन्म हो पाता है।' उपदेश के रूप में : 'वर्द्धमान' में प्रकृति कहीं-कहीं चिन्तन-प्ररेक के रूप में भी लक्षित होती है। प्रकृति की शान्ति व सुंदरता कुमार को अपनी ओर आकृष्ट करती है। कुमार प्रकृति की गोद में घण्टों बैठकर चिन्तन-मनन करते रहते हैं। उनकी तात्विक विचारधारा को पुष्ट करने में प्रकृति पूर्णतः सहायक होती है। सन्ध्या समय की प्रकृति व सान्ध्य तारा के धीर-गंभीर स्वरूप को विलोक कर वर्द्धमान के हृदयकाश में अनेकानेक दार्शनिक विचार-स्फुलिंग प्रकाशित होते हैं। नवें सर्ग में वर्द्धमान कुमारावस्था में ही ऋजुवालिका नदी के सुरम्य तट दीर्घ समय तक बैठकर प्रकृति के नाना तत्वों के साथ एकात्मभाव साधकर जीवन के गूढ रहस्यों पर सोचते रहते हैं। ग्यारवें सर्ग में दिनान्त-वर्णन के द्वारा महावीर की आध्यात्मिक विचारधारा अभिव्यक्त होती है। प्रकृति यहाँ रहस्यात्मक बनकर कुमार के चिंतन को पुष्ट करती है-यथा मनुष्य का जीवन एक पुष्प है, प्रफुल होता यह है प्रभात में, परन्तु छाया लख सान्ध्य काल की, विकीर्ण हो के गिरता दिनान्त में। अदीर्घ है जीवन दुःख से भरा, प्रसून फूला, मुरझा गया यथा, प्रभात में आकर ओस-बूंद-सा, सरोज को कान्तकिया, चला गया। 327-49 1. डॉ० विश्वम्भरनाथ उपाध्याय-'अनूप शर्मा-कृतियां और कला' के अन्तर्गत 'वर्द्धमान और द्विवेदीयुगीन परम्पराओं' शीर्षक निबंध, पृ० -156.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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