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________________ आधुनिक हिन्दी जैन काव्य : विवेचन 181 उस प्रकार समीप नृपाल के विलसती त्रिशला अति मुग्ध थी।' प्रकृति का आलंकारिक वर्णन : प्रकृति के अंगों का प्रयोग कवि ने त्रिशला की सौन्दर्य-श्री को अभिव्यक्त करने में भी किया है-यथा त्वदीय पाताल-समान नाभि है उरोज हैं उच्च नगाधिराज-से। मनोज्ञ वेणी इस भांति है लसी। कालिन्दीनी का विनिपात हो यथा। मृगांक से आनन पे पड़ी हुई पयोद-माला-सम केश-राशि को। हेमन्त ऋतु के प्रभात का कवि वर्णन करते हैं दरिद्र-आशा-सम शीत-यामिनी बड़ी कि तृष्णा अनुदार-चित्त की, कि द्रोपदी के पट-सी प्रलंविनी सुदीर्घ हेमन्तिक शर्वरी हुई। प्रकृति वर्णन निरन्तर कथा को पुष्ट करता है, बल्कि कभी-कभी तो यों प्रतीत होता है कि कवि प्रकृति को छोड़कर आगे नहीं बढ़ पाते। कहीं-कहीं प्रकृति वर्णन में स्थूलांकन की विधि दृष्टिगोचर होती है, जिससे विवरण की प्रधानता व्यक्त होती है-उदाहरण के लिए द्रष्टव्य हैप्रभात सजाया, तम नष्ट हो गया, त्विषा लगी पूर्व दिशा प्रकाशने। समीर डोला, सुमनावली हिली, प्रकाश फैला, दशदिग्विभाग में। कहीं सादृश्यमूलक अलंकारों के प्रयोग द्वारा अलंकृत पद्धति का भी कवि ने प्रयोग किया हैसरोज नेत्रा सितचन्द आनना। महान रम्भा तरुवृन्द सौख्यदा 1. अनूप शर्मा-'वर्द्धमान', पृ॰ 81-31. .2. वही, पृ० 83-31. 3. वही, पृ. 175-10.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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