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________________ ( xvii ) इनमें आधुनिक विचारधारा का कहाँ और कैसा प्रभाव प्रतिम्बित हुआ है, इसकी ओर निर्देश किया गया है। विविध मुक्तक रचनाओं के भाव पक्ष पर विस्तार से दृष्टिपात किया गया है। विषय वस्तु में काफ़ी समानता होने पर भी भाव, विचार, कल्पना व प्रस्तुतीकरण की विभिन्नता एवं विशिष्टता के कारण पद्य की प्रत्येक रचना का निजी महत्त्व है। इस अध्याय का समग्र विवेचन अनुसंधायिका का अपना विनम्र प्रयास है। चतुर्थ अध्याय 'आधुनिक हिन्दी-जैन गद्य साहित्य : विधाएं और विषय-वस्तु' शीर्षक के अन्तर्गत आधुनिक युग में गद्य के महत्त्व, प्रारंभ व प्रसार पर दृष्टिपात करके आधुनिक जैन गद्य साहित्य की विविध कृतियों का विषयवस्तु परक परिचय विस्तृत रूप से प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। इसमें जहां उत्तम साहित्यिक कला-कृतियां प्राप्त होती हैं, तो भक्ति-परक उद्देश्य से परिपूर्ण सामान्य कृतियां भी विशाल परिमाण में प्राप्त होती हैं। पंचम अध्याय 'आधुनिक हिन्दी-जैन पद्य-साहित्य का कला-सौष्ठव' के अन्तर्गत पद्य के बाह्य सौन्दर्य के लिए आवश्यक महत्त्वपूर्ण तत्त्वों के निरूपण के बाद आलेच्य जैन-प्रबंध काव्यों के सौन्दर्य पक्ष में छन्द, अलंकार, प्रबन्धत्व, भाषा-शैली, वर्णनात्मकता, सूक्ति प्रयोगों की चर्चा के साथ मुक्तक रचनाओं की भाषा-शैली, छन्द, अलंकारादि का विवेचन अनुसंधायिका ने प्रयास स्वरूप किया है। छठा अध्याय 'आधुनिक हिन्दी-गद्य साहित्य का शिल्प-विधान' के भीतर गद्य-साहित्य की विशिष्टता व्यक्त करनेवाले तत्त्वों के परिचय के साथ उपलब्ध प्रत्येक विधागत विशिष्ट कृतियों का भाषा-शिल्प, संगठन-सौष्ठव, चारित्रिक विश्लेषण, संवाद, उद्देश्य, शैली आदि दृष्टियों से विवेचन किया गया अंततोगत्वा उपसंहार में उपलब्ध साहित्य की सीमा व विशिष्टता का संक्षेप में उल्लेख करके सन् 1970 के अनन्तर प्रकाशित साहित्य का संक्षिप्त वर्णन किया गया है। प्रस्तुत प्रबन्ध लेखन में लेखिका अपने निर्देशक गुरुवर डा. दयाशंकर शुक्ल के प्रति अत्यन्त आभार प्रकट करती है। हिन्दी विभाग के प्रोफेसर व अध्यक्ष सम्माननीय डा. मदनगोपाल गुप्तजी के प्रति लेखिका अत्यन्त अनुगृहीत है। जिन्होंने न केवल प्रस्तुत विषय पर कार्य करने की अनुमति दी, बल्कि समय-समय पर महत्त्वपूर्ण सुझाव देने की भी कृपा की है। गुजरात विश्वविद्यालय के हिन्दी-विभागाध्यक्ष एवं प्रो. डा० अम्बाशंकर नागर तथा एल. डी. इन्स्टीट्यूट
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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