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________________ ( xviii ) के नियामक डा० दलखुसभाई मालाणिया के मूल्यवान सुझावों के लिए भी लेखिका हार्दिक आभार व्यक्त करती है। लेखिका जैन समाज के विद्वानों एवं आचार्यों के प्रति-जिनसे प्रत्यक्ष व परोक्ष सहायता प्राप्त हुई है- अपनी कृतज्ञता व्यक्त करना अपना कर्त्तव्य समझती है। इस शोध-कार्य के लिए विभिन्न जैन-भण्डारों को देखना पड़ा है, जिसके लिए अनुसंधायिका उन भण्डारों के ट्रस्टियों एवं व्यवस्थापकों के सहयोग के लिए सदैव आभारी रहेगी। गायकवाड़ प्राच्य विद्यामन्दिर के नियामक डॉ. अरुणोदय जानी एवं प्रकाशन विभाग के अधिकारी तथा व्यवस्थापक के प्रति शोधार्थिनी आभारी है। जिन्होंने स्नेह और सौख्य भरे वातावरण में पढ़ने-लिखने की विशेष सुविधा उपलब्ध करवाई। मैं अपने पति के प्रति आभार प्रदर्शन कैसे करूं? सब कुछ उन्हीं का तो है उनके सहयोग के बिना यह कार्य प्रारम्भ ही न हो पाता। शीघ्र एवं उत्साह से शोध-प्रबन्ध का टंकण कार्य करने के लिए श्री आर. एस. दुबे तथा शोध-प्रबन्ध के पठन-पाठन में सहायता करने के लिए भाई श्री लिम्बासिया व चिरंजीव पौरव के प्रति हार्दिक आभार व स्नेह व्यक्त करना अनुसंधायिका उचित समझती है। प्रबंध में त्रुटियों का रह जाना सहज संभाव्य है, जिनके प्रति विद्वत्जनों की उदार दृष्टि की अपेक्षा है। कमियों का रहना लेखिका का दोष होना, एवं कार्य की थोड़ी-बहुत उपलब्धि का सम्पूर्ण श्रेय पथ-प्रदर्शक गुरु जी को समर्पित है।
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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