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कि प्रस्तुत शोध-विषय उपयुक्त रचनाओं से सर्वथा पृथक एवं मौलिक है। हां, प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष प्रभाव या दिशा-निर्देश अवश्य प्राप्त हुआ होगा, जिसके लिए अनुसंधायिका उन विद्वानों तथा लेखकों की आभारी है। प्रस्तुत शोध-प्रबंध के आलोच्यकालीन युग में हिन्दी जैन साहित्यकारों ने जैन धर्म के किसी न किसी तत्त्व या सिद्धान्त को उद्देश्य रूप में रखकर सृजन किया है, जिससे धर्म के नीरस अथवा गहन तत्त्वों को रसात्मक साहित्य-रूप में प्रस्तुत करने से सामान्य जन समाज सहजभाव से आत्मसात् कर रसानुभूति प्राप्त कर सकता है। इसमें सात्त्विक एवं बोधप्रद साहित्य भी रहता है, तो कलात्मक रसपूर्ण साहित्यिक कृतियां भी रहती हैं। केवल बोध या चिन्तन-प्रणाली नीरस व जड़ क्रियावादी भी हो सकती है, लेकिन इसे ही ललित साहित्य के रूप में प्रस्तुत कर व्यापक व लोकप्रिय बनाया जाता है। यह कार्य आधुनिक युग के जैन-साहित्यकारों ने सिद्ध किया है। अतः ऐसी रचनाओं को प्रकाश में लाकर उनका अनुशीलनपरिशीलन करने का लेखिका का विनम्र प्रयास रहा है।
प्रस्तुत प्रबन्ध छः अध्यायों में विभाजित है। प्रथम अध्याय 'विषय प्रवेश व परम्परा' के अन्तर्गत जैन धर्म की परिभाषा, महत्त्व, अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर के समय की परिस्थितियाँ, महावीर की विविध क्षेत्र में विश्व को देन, जैन धर्म के प्रमुख तत्त्व व उनकी आधुनिक युग में उपादेयता का विवेचन किया गया है। ‘परम्परा' के अन्तर्गत हिन्दी साहित्य के प्रारंभ से अर्थात् 10वीं शती से लेकर 19वीं शती तक के अपभ्रंश, ब्रज व हिन्दी जैन साहित्य का संक्षेप में विवेचन किया गया है। इस अध्याय में अनेकानेक ग्रन्थों का सहारा लिया गया है लेकिन विवेचन व निष्कर्ष लेखिका के अपने हैं। ___ दूसरे अध्याय में 'आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य-सामान्य परिचय' के अन्तर्गत आधुनिकता का महत्त्व, प्रारंभ व सानुकूल परिस्थितियों के चित्रण के साथ हिन्दी साहित्य में आधुनिक युग का प्रारंभ निर्दिष्ट कर हिन्दी जैन साहित्य में आधुनिक युग का प्रारम्भ और विकास बताया गया है तथा गद्य-पद्य के विविध भेद और तद्विषयक आलोच्यकालीन उपलब्ध कृतियों का वर्गीकरण कर संक्षिप्त परिचय देने का प्रयास किया गया है। यह प्रयास लेखिका का निजी
_तृतीय अध्याय 'आधुनिक-हिन्दी-जैन काव्य-विवेचन' के अन्तर्गत प्रबंध और मुक्तक के आवश्यक तत्त्वों के परिचय के साथ उपलब्ध महाकाव्यों की कथावस्तु. रस, नेता, कल्पना, जीवन-दर्शन आदि पहलुओं पर विस्तृत विचार किया गया है। प्राप्त खण्ड काव्यों पर भी उसी रूप से विचार करने के उपरान्त