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उन्होंने दिशा-सूचन किया होता तो उसकी उपादेयता असंदिग्ध रूप से सिद्ध होती। बाबू कामताप्रसाद जैन ने भी 'हिन्दी-जैन-साहित्य का संक्षिप्त इतिहास' लिखकर जैन-साहित्य के 10वीं शताब्दी से 18वीं शती तक के विशाल कालखण्ड को समावृत्त किया है। किन्तु आधुनिक काल के साहित्य को उन्होंने भी नहीं स्पर्श किया है। प्रसिद्ध जैन विद्वान डा० नेमिचन्द्र शास्त्री ने 'हिन्दी जैन साहित्य-परिशीलन' दो खण्डों में लिखा है, जिनमें आदिकालीन, मध्यकालीन तथा आधुनिक युग के हिन्दी जैन साहित्य का विवेचन संक्षेप में प्रस्तुत किया है। उनका दृष्टिकोण अपभ्रंश एवं मध्यकालीन जैन साहित्य की ओर जितना आकृष्ट हुआ है, उतना आधुनिक काल के प्रति नहीं हुआ है। ऐसा उन्होंने स्वयं स्वीकार किया है। तीनों विद्वान इतिहासकारों ने अनेक प्राचीन रस-सिद्ध कवियों की सौन्दर्यपूर्ण साहित्यिक व भक्तिपरक रचनाओं को प्रकाश प्राप्त करवाने का प्रशंसनीय कार्य किया है।
उपरोक्त इतिहासों के अतिरिक्त डा. प्रेमसागर जैन ने विद्वतापूर्ण शैली में "हिन्दी जैन भक्ति की दार्शनिक पृष्ठभूमि' तथा 'हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि' दो खण्डों में शोध प्रबंध प्रस्तुत किया है। उन्होंने जैन-भक्ति की परिभाषा, सिद्धान्त, महत्त्व और विशिष्टता के साथ दूसरे खण्ड में मध्यकालीन भक्त-कवियों की रचनाओं के विषय में विवरण प्रस्तुत किया है। गुजरात के डा. हरिप्रसाद शुक्ल 'हरीश' का 'गुर्जर जैन कवियों की हिन्दी साहित्य को देन' शीर्षक शोध प्रबन्ध हाल में प्रकाशित हुआ है, जिसमें उन्होंने जैन धर्म का महत्त्व व दर्शन की पृष्ठभूमि का संक्षेप में वर्णन कर गुजरात के जैन-कवियों एवं उनकी रचनाओं का विवेचन किया है। डा. श्रीलालचन्द्र जैन का 'जैन कवियों के ब्रजभाषा प्रबंध काव्यों का अध्ययन' नामक शोध-ग्रन्थ प्रकाशित हुआ है, जिसमें मध्यकालीन जैन ब्रजभाषा-प्रबन्ध-काव्यों का विस्तृत विवेचन तत्कालीन परिस्थितियों के साथ किया है और जैन ब्रजभाषा प्रबन्ध काव्यों का भावगत् व शिल्पगत् सौन्दर्य का अच्छा विवेचन है और ब्रजभाषा प्रबन्ध काव्यों का भावगत व शिल्पगत सौन्दर्य का अच्छा विवेचन किया है। डा. वासुदेव सिंह ने 'अपभ्रंश एवं हिन्दी जैन रहस्यवाद' नामक महत्त्वपूर्ण शोध-प्रबंध प्रस्तुत किया है। इसमें उन्होंने अपभ्रंश तथा ब्रजभाषा के जैन साहित्य में रहस्यवाद के सम्बन्ध में अध्ययन प्रस्तुत किया है।
उपर्युक्त इतिहासों एवं शोध-प्रबंधों के संक्षिप्त विवेचन से स्पष्ट होता है 1. द्रष्टव्य-डा. नेमिचन्द्र शास्त्री-हिन्दी जैन साहित्य-परीशीलन, भाग-2, दो शब्द,
पृ. 10.