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________________ 154 आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य तपस्या, परिषहों (कष्टों) केवल ज्ञान और 11 प्रमुख गणधरों के साथ दार्शनिक व व्यावहारिक उपदेश देने की पूरी कथा गुंफित कर दी है। कथा का सूत्र कहीं-कहीं वर्णनों के घटाटोप के कारण हाथ से छटने की तैयारी में होने पर कवि कुशलता से संभाल लेते हैं। कथा की एक और विशेषता यह है कि कवि ने इसमें श्वेताम्बर व दिगम्बर आचार्यों की कितनी ही बातों में सामंजस्य स्थापित करने की कोशिश की है। वर्द्धमान का व्याह उन्होंने शुद्ध श्वेताम्बर मतवालों की अनुमोदना के मुताबिक न कर स्वप्न में करवाया है। फिर भी श्वेताम्बर मान्यता के मुताबिक यशोदा नामक राजा समरवीर की पुत्री के साथ करवाया है। इस प्रकार महावीर के सम्पूर्ण जीवन क्रम को लेकर लिखा गया 'वर्द्धमान' में कथा का सूत्र दृढ़ न होने पर भी कहीं छूटता नहीं है। इसीलिए इसे 'चरितात्मक महाकाव्यों की क्षेणी में इस कृति की गणना करने में अधिक संकोच की बात नहीं दिखाई पड़ती। महावीर चरित की प्रसिद्ध कथा वस्तु ग्रहण की गई होने से केवल उसकी विशेषताएं व कमियों पर ही प्रकाश डालने की विचारणा करने की कोशिश करेंगे। कथावस्तु का विवेचन : 'वर्द्धमान' के सम्बन्ध में एक मुख्य बात यह विचारणीय है कि यह ग्रन्थ न तो इतिहास है, न जीवनी। यदि आप भगवान महावीर की जीवन सम्बंधी समस्त घटनाओं का और तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक अथवा धार्मिक परिस्थितियों का क्रमवार इतिहास इस ग्रन्थ में .खोजना चाहेंगे तो निराश होना पड़ेगा। यह तो एक महाकाव्य है, जिसमें कवि ने भगवान के जीवन और व्यक्तित्व को आधार फलक बना कर कल्पना की तुलिका चलाई है। यहाँ इतिहास तो केवल डोर की तरह है, जो कल्पना की पतंग को भावनाओं के आकाश में खुली छूट देने के लिए प्रयुक्त है। उड़ान का कौशल देखने के लिए दर्शक की दृष्टि पतंग पर रहती है, डोर पर नहीं। हां, पतंग के खिलाड़ी को उतनी डोर अवश्य संभालनी पड़ती है, जितनी उड़ाने के लिए आवश्यक है। महाकाव्य की कथा वस्तु ऐतिहासिक या प्रसिद्ध कथा या इतिहास प्रसिद्ध चरित्र से सम्बंधित होनी चाहिए, इस नियम का 'वर्द्धमान' पूर्णतः पालन करता है, क्योंकि इसकी कथा वस्तु विश्वबन्ध प्रसिद्ध चरित-नायक प्रभु. महावीर के जीवन व दर्शन की यशोगाथा से रेखांकित है। कवि ने वर्द्धमान के जन्म एवं जन्म पूर्व की परिस्थिति, गर्भ स्थिति एवं पूर्व जन्मों, बाल्यकाल, यौवन काल 1. डा. वीणा शर्मा-आधुनिक हिन्दी महाकाव्य, पृ. 45. 2. लक्ष्मीचन्द्र जैन : 'वर्द्धमान', आमुख, पृ. 2.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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