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आधुनिक हिन्दी जैन काव्य : विवेचन
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एवं तीर्थंकरत्व आदि विविध जीवन-पहलुओं का विशाल गौरवपूर्ण चित्र हमारे सामने खींचा है। महाकाव्य की गरिमा के लिए सर्वथा उपयुक्त धीरोदात्त नायक के जीवन की घटनाओं का कवि ने सुरेख व स्पष्ट उद्घाटन किया है। कवि ने कथावस्तु में विविध वस्तु-वर्णन को भी यथेष्ट स्थान दिया है, बल्कि कहीं-कहीं तो वर्णन के प्राचुर्य में कथा का प्रवाह मंद-सा हो जाता है। इसमें नख-शिख वर्णन, प्रभात, उषा-वेला, सन्ध्या, प्रदोष, रात्रि, सूर्य एवं चन्द्र की विविध कलाओं, नदी, जंगल, पर्वत, नगर, विविध ऋतुओं, पक्षी एवं पुष्पों का, प्रकृति का विशद् वर्णन कर प्राचीन परिपाटी का भी कवि ने भलीभांति निर्वाह किया है।
'वर्द्धमान' की कथा-विषयक विशेषता के सम्बंध में डा. रामगोपाल सिंह के विचार हैं कि-'वर्द्धमान महावीर स्वामी के जीवन पर आधारित प्रबन्ध काव्य है, जिसमें अहिंसा के प्रतिपादन में आज के युग की समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। महाकाव्य के लिए अपेक्षित आधिकारिक कथा वस्तु के साथ प्रासंगिक कथा वस्तु को महाकाव्य की सफलता का एक अंग माना जाता है, क्योंकि प्रासंगिक कथाएं मूल कथा में तीव्रता एवं गति पैदा करती हैं। 'वर्द्धमान' में महावीर की मूलकथा के साथ अवान्तर कथा के रूप में चन्दना-चरित, कामदेव-सुरेन्द्र-संवाद, कामदेव द्वारा वर्द्धमान की परीक्षा, गोशालक कथा, चण्डकौशिक-प्रसंग आदि मर्मस्पर्शी अवान्तर कथाएं वर्णित हैं, जिनसे सौन्दर्य की सृष्टि करने में कवि को सफलता प्राप्त हुई है। फिर भी एक बात अवश्य ध्यान खींचती है कि 17 सर्गों में विभक्त इस बृहत् महाकाव्य में कथा वस्तु के लिए आवश्यक दृश्य विधानों की कमी है, लेकिन घटना-विधान एवं परिस्थिति निर्माण की बहुलता है। घटनाओं का क्रम मंथर गति से चलता है, अतः पाठक से सामने एक निश्चित क्रमानुसार ही घटना चलती है। 'कवि ने इस प्रकार का कोई दृश्य आयोजित नहीं किया, जो मानव की रागात्मिका, हृत्तंत्री को सहज रूप में झंकृत कर सके।
कवि अनूप जी ने मूल कथा वस्तु में विशेष परिवर्तन नहीं किया है, हां, एकाध जगह उन्होंने अपनी उदार कल्पना के द्वारा दो सम्प्रदायों की विचारधारा में सामंजस्य स्थापित करने का अवश्य प्रयास किया है। कवि ने चातुरी से स्वप्न में भगवान का 'मुक्ति देवी' के साथ व्याह सुसंपन्न करवाया है। जिसका हम ऊपर उल्लेख कर चुके हैं। दूसरी समन्वयात्मक घटना यह है कि दिगम्बरों में 1. डा. रामगोपाल सिंह चौहान-आधुनिक हिन्दी साहित्य, पृ. 118. 2. डा० नेमिचन्द्र शास्त्री-हिंदी जैन साहित्य परिशीलन, भाग-2, पृ. 21.