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________________ 148 आधुनिक हिन्दी - जैन साहित्य महाकाव्य : महाकाव्य के विषय में सर्वप्रथम आचार्य भामह ने स्वरूप-निर्धारण किया था। संस्कृताचार्यों ने महाकाव्य के सम्बन्ध में गहराई से कृति, कृतिकार व समाज तीनों को सुसम्बंधित, सुगठित करके विचार किया है। आचार्य भामह के मतानुसार लम्बे कथानक वाला, महान चरित्रों पर आश्रित, नाटकीय पाँच सन्धियों से युक्त, उत्कृष्ट और अलंकृत शैली में लिखित तथा जीवन के विविध रूपों और कार्यों का वर्णन करने वाला, सर्गबद्ध, सुखान्त काव्य ही महाकाव्य है सर्गबद्ध महाकाव्यं, महत्तां च महच्चयत् । अग्राम्य शब्दार्थ च सालंकार सदाश्रयम् ॥ मन्त्र दूत प्रयाणजि नायकाम्युदेवं च यत् । पंचभिः सन्धिमिः युक्त नातिवाच्येय वृद्धियत् ॥ - काव्यालंकार - 1, 10, 20. प्राचीन काव्य शास्त्रकार दण्डी, विश्वनाथ, वामन, रुद्रट, मम्मट, हेमचन्द्राचार्य आदि ने महाकाव्य के विषय में विशद् विचार व नियम - उपनियम निर्धारित किये हैं, लेकिन यहां इन सबके विचारों को उद्धृत करने का उद्देश्य नहीं है। पौर्वात्य विद्वानों की भांति पाश्चात्य विद्वानों ने विचारकों ने भी उत्कृष्ट सफल महाकाव्य के लिए आवश्यक लक्षणों को निश्चित किये हैं। ' हिन्दी साहित्य कोश' में महाकाव्य के विषय में लिखा गया है कि - " महाकाव्य छन्दों बद्ध कथानक साहित्य का वह रूप है, जिसमें क्षिप्र कथा - प्रवाह या अलंकृत वर्णन अथवा मनोवैज्ञानिक चित्रण से युक्त ऐसा सुनियोजित, सांगोपांग और जीवन्त लम्बा कथानक हो, जो रसात्मकता या प्रभावान्विति उत्पन्न करने में पूर्ण समर्थ हो सके, जिसमें यथार्थ, कल्पना या संभावना पर आधारित ऐसे चरित्र या चरित्रों के महत्वपूर्ण जीवनवृत्त का पूर्ण या आंशिक रूप में वर्णन हो, जो किसी युग के सामाजिक जीवन का किसी न किसी रूप में प्रतिनिधित्व कर सके, जिसमें किसी महत् प्रेरणा से अनुप्राणित होकर किसी महदुद्देश्य की सिद्धि के लिए किसी महत्वपूर्ण गंभीर अथवा रहस्यमयी और आश्चर्योत्पादक घटना या घटनाओं का आश्रय लेकर संश्लिष्ट और समन्वित रूप से जाति--विशेष या युग - विशेष के समग्र जीवन के विविध रूपों, पक्षों और मानसिक अवस्थाओं और कार्यों का वर्णन और उद्घाटन किया गया हो और जिसकी शैली इतनी गरिमामयी और उदात्त हो कि युग-युगान्तर तक महाकाव्य को जीवित रहने की शक्ति प्रदान कर सके।” इसके अनन्तर मोटे तौर पर पौर्वात्य और पाश्चात्य 1. हिन्दी साहित्य कोश, पृ० 79.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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