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________________ आधुनिक हिन्दी जैन काव्य : विवेचन शृंखलित रहते हैं । गीतिकाव्य में संगीतात्मकता का समावेश होता है । अस्तु, रूप-आकार आदि की दृष्टि से प्रबन्ध, मुक्तक एवं गीति में परस्पर अन्तर है, किन्तु ये सभी पद्यबद्ध होते हैं - अतः रस यदि कविता की आत्मा है, तो पद्यबद्धता या छन्दोबद्धता उसका शरीर है, ध्वनि उसका रूप रंग है, अलंकार उसके आभूषण हैं, वक्रोक्ति उसकी वाणी का माधुर्य है और रीति उसके व्यवहार की कमनीयता है । " " 147 आचार्य रामचन्द्र शुक्ल मुक्तक व प्रबन्ध का अन्तर स्पष्ट करते हुए लिखते हैं- " मुक्तक में प्रबन्ध के समान रस की धारा नहीं रहती, जिसमें कथा-प्रसंग की परिस्थिति में अपने को भूला हुआ पाठक मग्न हो जाता है और हृदय में एक स्थायी भाव ग्रहण करता है। इसमें (मुक्तक) तो रस के ऐसे छींटे पड़ते हैं, जिनसे हृदयकलिका थोड़ी देर के लिए खिल उठती है। यदि प्रबन्ध काव्य एक विस्तृत वनस्थली है, तो मुक्तक एक चुना हुआ गुलदस्ता है। इसी से यह सभा-समाजों के लिए अधिक उपयुक्त होता है। उसमें उत्तरोत्तर अनेक दृश्यों द्वारा संगठित पूर्ण जीवन या उसके किसी पूर्ण अंग का प्रदर्शन नहीं होता, बल्कि कोई रमणीय खण्ड दृश्य इस प्रकार सामने ला दिया जाता है कि पाठक या श्रोता कुछ क्षणों के लिए मंत्र-मुग्ध सा हो जाता है।” आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के इस कथन से स्पष्ट फलित होता है कि पूर्वावर सम्बन्ध रहित भाव या ऊर्मि के प्रवल प्रभाव के कारण मुक्तक का महत्व अल्पकालीन होते हुए भी रसात्मक होता है और विविध पात्र, प्रसंग व कथा या कथांश के कारण प्रबन्ध काव्य का प्रभाव तत्कालीन न होते हुए भी दीर्घकालीन होता है। क्योंकि ' तटिनी की भांति नाटक और प्रबन्ध काव्य अपने आदि और अन्त के बीच में कथानक की धारा लेकर बहते हैं। जबकि मुक्तक में कथानक की पूर्वापरता या जीवन की किसी प्रमुख घटना या दृश्य का सदन्तर अभाव सा रहता है। आचार्य नंददुलारे वाजपेयी जी ने भी 'साकेत' पर विचार करते हुए वस्तु, नेता और रस इन तीनों को ही प्रकारान्तर से प्रबन्ध काव्य के आधार तत्त्व माने हैं। जब मुक्तक की रसात्मकता के लिए इन तत्त्वों का महत्व नहीं है। इस प्रकार प्रबंध और मुक्तक के प्रमुख - बाह्य और आंतरिक - अन्तर को देखने के अनन्तर संक्षेप में महाकाव्य, खण्ड काव्य और मुक्तक के सम्बन्ध में विचार करना अनुपयुक्त नहीं होगा । 1. डा० गणपतिचन्द्र गुप्त - ' साहित्यिक निबंध' - कविता क्या है? निबंध, पृ० 62. 2. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल - हिन्दी साहित्य का इतिहास, पृ० 284-286. 3. डा॰ सरनाम सिंह शर्मा 'अरुण' - साहित्य, सिद्धान्त और समीक्षा, पृ० 43.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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