SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 170
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आधुनिक हिन्दी - जैन साहित्य संस्कृत काव्य शास्त्र के अन्तर्गत 'काव्य' का अर्थ व्यापक अर्थ में प्रयुक्त होता है। 'काव्य' के अन्तर्गत ही दृश्य काव्य और उसके भेद तथा श्रव्य काव्य व उसके भेदोपभेद उपलब्ध होते हैं। दृश्य काव्य के भीतर रूपक व उपरूपक के भेद तथा श्रव्यकाव्य में पद्य तथा गद्य के विविध रूप वर्गीकृत किये गये हैं। लेकिन आधुनिक युग में विशेषतः पाश्चात्य काव्य शास्त्र के प्रभाव से 'काव्य' के अन्तर्गत केवल पद्य (Poetry) का ही समायोजन किया गया है, क्योंकि नाटक की दृश्य - विधा को गद्य के साथ संनिहित किया गया है। पद्य और गद्य के अतिरिक्त दोनों के मिश्रित रूप में चम्पू काव्य को भी गिनाया जाता है । गद्य में उपन्यास, नाटक, कहानी, निबंध, रेखाचित्र, जीवनी व आत्मकथा ऐसे विविध उपभेद आधुनिक युग में प्राप्त होते हैं, जबकि काव्य के प्रमुख तीन भेद स्वीकृत हुए हैं - प्रबन्ध काव्य, मुक्तक काव्य और गीति काव्य" अथवा प्रबन्ध व मुक्तक। प्रबंध के भीतर महाकाव्य और खण्ड काव्य ऐसे दो स्वरूप दृष्टिगत होते हैं, जबकि मुक्तक में पाठ्य और गेय ऐसे दो रूप मिलते हैं। यहां पौर्वात्य व पाश्चात्य काव्य शास्त्रकारों, विद्वान् समालोचकों, साहित्यकारों की काव्य सम्बंधी विचारधारा और परिभाषाएं उद्धृत करने की समीचीनता नहीं है । उसी प्रकार संस्कृत काव्य शास्त्र के विविध-सम्प्रदायों के आचार्य और पाश्चात्य काव्य शास्त्र के विवेचकों के द्वारा निर्धारित काव्य के तत्व, हेतु (प्रयोजन) गुण-दोष आदि की चर्चा भी यहां अनपेक्षित है। फिर भी यह बात सर्वकाल सम्मत रहेगी कि काव्य में चाहे किसी भी भाषा का या किसी भी युग वा देश का हो - भाव तत्त्व, विचार तत्त्व, कल्पना तत्त्व व शैली तत्त्व सप्रमाण रूप से संनिहित होने चाहिए, फिर प्राधान्य किस तत्त्व को प्रदान किया जाता है, वह कवि की भावभूमि, बौद्धिकता, चिन्तनशीलता व कल्पना की ऊर्वरता पर निःशंक निर्भर किया जाता है। 146 काव्य के भेद : काव्य के प्रबन्ध व मुक्तक के प्रमुख दो भेदों में (मूलतः ) तत्त्वतः आंतरिक व बाह्य-भाव जगत और रूप जगत में अंतर परिलक्षित होता है। इस सम्बन्ध में भी हमारे प्राचीन आचार्यों ने महाकाव्य के लिए विविध आवश्यक तत्त्वों को निर्देशित करके खण्ड काव्य पर भी विचार किया है। एक ही साहित्य ने दो विभिन्न रूपों में आकार-प्रकार, शैली, पात्र, वस्तु, वर्णन, उद्देश्य आदि बहुत से दृष्टिकोणों से भिन्नता प्रेक्षणीय है। " प्रबन्ध काव्य में प्रारंभ से लेकर अंत तक दीर्घ कथा चलती रहती है। मुक्तक काव्य के छन्द एक दूसरे से वि 1. डा० गणपतिचन्द्र गुप्त- 'साहित्यिक निबंध'-' कविता क्या है? निबंध', पृ॰ 62.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy