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________________ चतुर्थ अध्याय आधुनिक हिन्दी जैन काव्य : विवेचन गत अध्याय में हमने आधुनिक युगीन हिन्दी-जैन साहित्य की उपलब्ध गद्य-पद्य रचनाओं की संक्षेप में चर्चा की थी। यहां हम केवल काव्य कृतियों का विवेचन करेंगे। काव्य का महत्व : आधुनिक युग, वैचारिकता व बौद्धिकता के प्रतीक गद्य से अभिहित है. यह सर्वथा मान्य है। क्योंकि आज के वैज्ञानिक युग में मस्तिष्क की चिंतनात्मक विचारधारा का व्यापक प्रचार-प्रसार जन-मानस में सरलता से गद्य के सफल माध्यम से ही सिद्ध हो सकता है, फिर भी पद्य का अपना नैसर्गिक महत्व उसकी लय-ताल बद्धता, मार्मिकता, रसात्मकता व संवेदनशीलता के कारण सदैव अक्षुण्ण रहेगा। आज के वैज्ञानिक युग में बौद्धिकता के विकास के साथ-साथ रागात्मक तत्वों का ह्रास होता जा रहा है और बौद्धिक जटिलता तर्कबद्धता एवं हार्दिक भावों की न्यूनता के कारण काव्य के रसात्मक सौन्दर्य का महत्व दिन-प्रतिदिन न्यून होता जा रहा है, ऐसा विद्वानों का विचार है। यदि यह आशंका सच हो तो भी अर्थशास्त्रीय दृष्टिकोण से यदि हम देखेंगे कि जिस वस्तु का जितना अभाव व अनुपलब्धि रहेगी, उतनी ही उसके मूल्य व महत्व में अभिवृद्धि होगी। इस नियमानुसार बौद्धिक युग की शुष्कता से पीड़ित मानवता को काव्य-उपवन की शीतल हरियाली अवश्य उल्लासित और आनंदित करेगी ही। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के शब्दों में यदि कहा जाये तो 'ज्यों-ज्यों सभ्यता बढ़ती जायेगी, त्यों-त्यों कवियों के लिए काम बढ़ता जायेगा। मनुष्य के हृदय की वृत्तियों से सीधा सम्बन्ध रखने वाले रूपों और व्यापारों को प्रत्यक्ष करने के लिए उसे बहुत-से पदों को हटाना पड़ेगा। इससे यह स्पष्ट है कि ज्यों-ज्यों हमारी वृत्तियों पर सभ्यता के नये-नये आवरण चढ़ते जायेंगे, त्यों-त्यों एक ओर कविता की आवश्यकता बढ़ती जायेगी, दूसरी ओर कवि-कर्म कठिन होता जायेगा। अतः कविता का महत्व मानव-जीवन को आई व रसमय बनाये रखने के लिए भविष्य में भी अक्षुण्ण रहेगा। 1. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल-चिंतामणि, भाग-1, 'कविता क्या है?', पृ. 144.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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