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________________ 144 आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य हैं एवं उनके भाषण, व्याख्यानों को भी लिपिबद्ध कर श्रद्धाशील श्रावक-भक्त के द्वारा प्रकाशित किया जाता है। उसी प्रकार अनेक जीवनियां भी प्रकाश में आती हैं, पर सभी साहित्यिक एवं विचारात्मक ही हों ऐसा नहीं है। फिर भी प्रायः जीवनियों में जीवनीकार के आदर्श, गुण-महत्ता का वर्णन सच्चाई के साथ किया जाता है। निबन्धों की संख्या इतनी अत्यधिक है कि सभी रचनाओं का नामोल्लेख यहाँ संभव नहीं है। कथा साहित्य में पौराणिक, ऐतिहासिक आधार पर लिखी गई कथाओं की संख्या अधिक है, जबकि काल्पनिक कथाओं की प्रायः कमी है। उपन्यास की संख्या भी अन्य गद्य-विधाओं की अपेक्षा.कम रही है, जिसकी कमी खलती है। जो हैं वे भी पौराणिक कथा वस्तु पर आधारित है। नूतन सामाजिक विषय वस्तु, अभिनव कल्पना एवं वर्तमान युग के पात्रों के द्वारा उपन्यास की रचना करके परोक्ष रूप से जैन दर्शन के किसी सिद्धान्तों पर प्रकाश डाला गया होता तो अधिक श्रेयस्कर एवं आवकार्य होता। नवीन लेखकों को इस ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। दूसरी बात यह भी उल्लेखनीय लगती है कि हिन्दी जैन साहित्यकारों में प्रायः जैन जाति के ही लेखकों की अभिरुचि विशेष रही है। इसके लिए शायद अपने धर्म एवं साहित्य के प्रति जैन लेखकों का विशेष आकर्षण एवं अन्य साहित्यकारों का हिन्दी जैन साहित्य के लिए अपेक्षित जैन दर्शन एवं प्राचीन साहित्य की अनभिज्ञता भी कारण रूप हो सकती है। हिन्दी साहित्य के अन्य लेखकों का ध्यान जैन पौराणिक कथा-साहित्य के लेखकों का या महान चरित्रों की ओर बहुत ही कम आकर्षित हुआ है, यह तथ्य है। (हिन्दी गद्य साहित्य की एक विशेषता यह भी स्पष्ट दीखती है कि ऐसा साहित्य-सृजन करने वाले मुनियों में दिगम्बर सम्प्रदाय के साधुओं का विशेष योगदान है, जिसके पीछे यह कारण भी हो सकता है कि प्रायः राजस्थान, उत्तर प्रदेश, एवं मध्य प्रदेश में इस सम्प्रदाय के साधुओं का वर्ग विशेष रूप से देखने में आता है और उनकी विहार भूमि या जन्म भूमि भी ये ही प्रान्त होने के कारण हिन्दी भाषा बोलचाल की और लेखन कार्य की रहती है। जबकि गुजरात या महाराष्ट्र में श्वेताम्बर संप्रदाय के साधुओं की संख्या विशेष है और उन्होंने अपना धार्मिक साहित्य गुजराती या अंग्रेजी भाषा में विशेष लिखा है। इस प्रकार आलोच्य कालीन हिन्दी जैन साहित्य की विभिन्न विधाओं की कृतियों के संक्षिप्त परिचय पर से स्पष्ट प्रतीत होता है कि आज के युग में जैन-गद्य-साहित्य अपनी विविध विधाओं में विशाल परिमाण में उपलब्ध होता है और उसकी निरन्तर प्रगति होती रहती है। अस्तु।
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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