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आधुनिक हिन्दी जैन काव्य : विवेचन
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साहित्यशास्त्रियों की महाकाव्य विषयक विशेषताओं को संमिश्रित रूप से निम्नलिखित रूप से शब्दांकित किया जा सकता है-सफल महाकाव्य के लिए
1. महान उद्देश्य, महान प्रेरणा और महान काव्य-प्रतिभा। 2. गुरुत्व, गांभीर्य और महत्व। 3. महान कार्यों और युग जीवन का सम्पूर्ण चित्रण। 4. अन्विति युक्त, सुसंबद्ध, सुसंगठित जीवन्त कथानक। 5. महान चरितवाला नायक तथा अन्य महत् पात्र। 6. उदात्त शैली, अलंकृत भाषा और गरिमामयी अभिव्यक्ति। 7. तीव्र प्रभावान्वित और गंभीर रस-व्यंजना। 8. अनवरुद्ध जीवनी-शक्ति और सशक्त प्राणवान।'
आधुनिक युग में महाकाव्य को इस प्रकार परिभाषित किया जाता है-महाकाव्य मर्मस्पर्शी घटनाओं पर आधारित एक महान कवि की ऐसी छन्दोबद्ध कृति है, जिसमें मानव जीवन की किसी ज्वलन्त समस्याओं का व्यापक प्रतिपादन, किसी महान उद्देश्य की पूर्ति या जातीय संस्कृति के महाप्रवाह उद्भावन, उदात्त वर्णन शैली, व्यंजक भाषा, पूर्ण रसात्मकता और उच्च कोटि के शिल्पविधान के द्वारा किया जाता है और जिसका नायक किसी भी लिंग, जाति या वंश का होकर भी अपने गुणों से कवि के आदर्शों को मूर्तिमान करनेवाला होता है -
इस प्रकार महाकाव्य के प्राचीन मानदण्ड के आधार पर उसके प्रमुख तत्त्वों को देखते हुए सहज ही प्रतिपाद्य हो सकता है कि आधुनिक काल में इन्हीं नियमों के आधार पर महाकाव्य प्रायः नहीं लिखे जाते। आज युग-परिवर्तन के साथ आधुनिक विचारधारा में भी काफी परिवर्तन आ गये हैं। महान जीवन्त कथावस्तु या महान नायक के सन्दर्भ में नवीन युग का प्रभाव दृष्टिगत होता है क्योंकि नूतन परिस्थितियों के सन्दर्भ में कथावस्तु, नायक, रस, वर्णन, भाषाशैली व छन्द-सर्गबद्धता आदि में नये आयाम व आकार सोच और स्वीकृत किये जाते हैं। फिर भी मूलतः महाकाव्य अवश्य ही जीवन का महाकाव्य होने से उसमें उदात्तता व गरिमा का संनियोजन होना चाहिए। “निश्चित रूप से महाकाव्य को महान काव्य भी होना चाहिए। तात्पर्य यह कि महाकाव्य के परंपरागत लक्षणों से युक्त होकर भी यदि किसी कृति में महान काव्य के गुण 1. राजेन्द्र शर्मा-समीक्षा के मानदण्ड, पृ. 58. 2. डा. श्यामनंदन किशोर-हिन्दी महाकाव्य का शिल्प विधान, पृ. 60.