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आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य : सामान्य परिचय
141 जगह व्यक्त होता है। प्रारम्भ में कच्छ प्रदेश की विशेषता वर्णित करने के पश्चात् जीवनीकार के जीवन के छाटे-बड़े सभी प्रसंगों का, चमत्कार, सिद्धि, तपस्या आदि का वर्णन रोचक शैली में किया है।
(6) आचार्य श्री राजेन्द्र सूरि की जीवनी उनके विद्वान अनुयायी एवं हिन्दी जैन लेखक विद्यानन्द जी ने सुन्दर शैली में लिखी है। इसमें जीवनी को कलात्मक ढंग एवं प्रवाहपूर्ण शैली में प्रस्तुत किया गया है।
(7) जैनाचार्य विजयेन्द्र सूरि जी की जीवनी काशीनाथ सराक ने लिखी है, जिसमें जीवनीकार के जीवन की सभी महत्त्वपूर्ण घटनाओं का अच्छा उद्घाटन किया है।
इन सबके अतिरिक्त मुनियों की छोटी-मोटी जीवनियां अनेक लिखी गई हैं। किसी धार्मिक, सामाजिक महान जैन पुरुष-स्त्री की जीवनी कहीं प्राप्त होती नहीं है, यह एक आश्चर्य कहा जायेगा। संस्मरण और अभिनन्दन ग्रन्थ लिखे गये हैं; लेकिन जीवनी नहीं। जैनाचार्यों और मुनियों की जीवनी, जो उनके शिष्य या भक्त के द्वारा लिखी गई हैं, इस सम्बन्ध में एक सवाल यह पैदा होता है कि क्या इन सब जीवनियों को साहित्य के अन्तर्गत समाविष्ट कर सकते हैं? क्या जीवनी साहित्य के सभी तत्त्वों का निर्वाह इनमें हो पाया है? या ऐसी जीवनियों से हिन्दी जैन साहित्य को और जैन-समाज को कुछ उपलब्ध होता है? इनके प्रत्युत्तर में यही कहा जा सकता है कि चाहे शिष्य या भक्त के द्वारा लिखी गई जीवनी में श्रद्धा विशेष के कारण अहोभाव या प्रशंसा का स्वर कहीं-कहीं अधिक प्रस्फुटित होता हो, फिर भी इसकी सत्यता में पाठक को आशंका नहीं होती। दूसरा, चाहे सुन्दर साहित्यिक शैली में सभी जीवनियां न लिखित हों, तो भी हिन्दी जैन साहित्य के भण्डार की श्रीवृद्धि तो अवश्य होती है और समाज को-विशेषतः जैन समाज को-अपने धर्म की महान व्यक्तियों का परिचय प्राप्त होता है। साथ ही उनके जीवन की महत्ता, उदात्तता से कुछ प्रेरणा भी मिलती है। अपने जीवन को भी ऐसी महत्त्वपूर्ण जीवनियों के पठन-पाठन से उदात्त एवं कर्त्तव्यशील बनाने की महत्त्वाकांक्षाएं भीतर ही भीतर जाने-अनजाने पनप उठती है। क्योंकि जीवनी और आत्मकथा भी ललित साहित्य की ही एक विधा होने से उनमें भी कलात्मकता एवं उपादेयता के अंश विद्यमान हो सकते हैं। जीवनी, संस्मरण और आत्मकथा के द्वारा मनुष्य की जिज्ञासा वृत्ति जाग्रत होकर तृप्त होने की ओर प्रवृत्त होती है। मनुष्य कुछ सीखना-जानना, प्राप्त करके अपने जीवन को भी उर्ध्वगामी बनाने की चाह रखता है। वैसे आत्मकथा की अपेक्षा जीवनी लिखना सरल है, क्योंकि