________________
112
आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
प्रतिष्ठित व सम्मानित स्व. गोपालदास बरैया जी ने इस उपन्यास की रचना संवत् 2005 में की थी। यह उपन्यास पूर्णतः धार्मिक उपन्यास होने से नीति-रीति, आचार-विचार, विवेक-सदाचार शील, संयम, पतिव्रता धर्म, पुत्र-पिता धर्म आदि विविध विषयों की चर्चा लेखक ने रोचक ढंग से की है। रोचक कथावस्तु एवं मार्मिक चरित्र-चित्रणों के कारण उपन्यास का धार्मिक पहलू विशेष खलता नहीं है। इस उपन्यास की एक विशेषता यह भी है कि प्रत्येक अध्याय का आदि व अन्त प्रकृति-चित्रण से ही हुआ है। किसी अध्याय में पात्रों की संख्या विशेष आ जाने से पाठक को कथा-क्रम का सातत्य स्मरण रखने में असुविधा हो सकती है। लेकिन कथा-प्रवाह इतना सशक्त एवं रोचक है कि पाठक को पात्रों की गतिविधि और घटना-चक्र की गति के कारण दिक्कत नहीं होती है और रसास्वादन में क्षति नहीं पहुंचती। घटनाएं श्रृंखला बद्ध होने पर भी अपने प्रारंभ व अन्त की कलात्मकता के कारण पाठक की उत्सुकता निरन्तर बनाए रहती हैं। "कुशल कलाकार ने इस उपन्यास में धार्मिक सिद्धांतों की व्यंजना के लिए काल्पनिक चित्रों को इतनी मधुरता एवं मनोमुग्धता से खींचा है, जिससे पाठक गुण स्थान जैसे कठिन विषयों को कथा के माध्यम द्वारा सहज में अवगत कर लेता है।"
विजयपुर के महाराजा श्रीचन्द्र के सुपुत्र जयदेव एवं महाराजा विक्रम की रूपगुण युक्ता पुत्री सुशीला को प्रधान पात्र बनाकर मुख्य नायिका के नाम पर उपन्यास का नामकरण किया गया है। इसके लिए सुशीला का चरित्र पूर्णरूपेण उपयुक्त समझा जा सकता है। सुशीला किसी भी संकट में धर्म व शील को नहीं छोड़ती तथा कुव्यक्तियों की लम्पटता का अडिगता से सामना कर सतीत्व का रक्षण करती है। मुक्तिदूत :
श्री वीरेन्द्र जैन का यह उपन्यास आलोच्य कालीन उपन्यासों में सर्वोत्कृष्ट कहा जा सकता है। अद्भुत रोमांचक क्रमबद्ध घटनाओं से युक्त कथावस्तु, श्लिष्ट मार्मिक चरित्र-चित्रण, आह्लादक उत्सुकता, प्रेरक वर्णनों की हारावलि, मार्मिक कथोपकथन सभी दृष्टियों से यह एक सफल उपन्यास है। 'मुक्ति दूत' के अनन्तर, आत्म कथात्मक-शैली में श्री वीरेन्द्र जी ने एक उपन्यास तीन भागों में लिखा है। प्रथम भाग 'अनुत्तरयोगी' द्वितीय भाग-'वैशाली का विद्रोही राजकुमार' तथा तृतीय भाग 'असिधारा पथ का यात्री' जो अत्यन्त सुन्दर कहे 1. डा० नेमिचन्द्र शास्त्री-हिन्दी जैन साहित्य परिशीलन-भाग 2, पृ० 64. 2. प्रकाशक-भारतीय ज्ञानपीठ-दिल्ली।