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________________ आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य : सामान्य परिचय 113 जायेंगे। लेकिन ये आलोच्य काल के अन्तर्गत समाविष्ट नहीं होते हैं। अत: उनकी चर्चा अनुपयुक्त होगी। _ 'मुक्ति दूत' में अंजना-पवनंजय की प्रसिद्ध पौराणिक कथावस्तु के आधार पर घटना चमत्कार एवं भावानुभूति का अद्भूत समन्वय किया गया है। इसी कारण पाठक की कौतूहल वृत्ति दोनों की परितृप्ति सहज में ही हो सकती हैं। वर्णनों की छटा प्रेक्षणीय है। कहीं-कहीं अत्यधिक लम्बे वर्णन कठिन व भारी हो जाते हैं। वैसे प्रत्येक वर्णन को पढ़कर पाठक के चित्त में आनंद की लहर तथा स्फूर्ति का अनुभव होने लगता है। ऐसे छटायुक्त तथा विस्तृत प्रकृति-दृश्यों, मानव-प्रकृति और प्रवृत्ति के विविध अंगों के वर्णनों को पढ़ते समय बरबस आचार्य हजारीप्रसाद जी के उपन्यास 'बाण भट्ट की आत्मकथा' के उत्कृष्ट वर्णनों की रम्यता स्मरण हो आती हैं। पवनंजय के क्रमशः आत्मविकास की कथा, अंजना के चारित्र्य-बल एवं सर्वोत्कृष्ट सतीधर्म के कारण निश्चित रूप धारण करती है। पुरुष के अहं-अभिमान रूपी अंधकार को नारी अपनी सहिष्णुता, प्रेम, औदार्य, वात्सल्य एवं आत्म समर्पण के द्वारा प्रकाश देकर मुक्ति की राह पर ले चलती है। 'कामायनी' की श्रद्धा भी क्या करती है? मनु की अहंजन्य विकार वृत्ति एवं विनाशक-प्रवृत्ति को अपने स्नेहसम्बल, औदार्य एवं आत्म समर्पण के पावन जल से परिष्कृत करती है तथा अहं को विसर्जित कराकर परम आनंदपद के धाम में ले जाकर शिवत्व, शान्ति, प्रेम व आनंद की अनुभूति करवाती है। अंजना भी पवनंजय के अहंकार, घोर धिक्कार-वृत्ति को संयम से चुपचाप सहती हुई, प्रेम और त्याग से क्षमादान देती हुई धर्म ध्यान में प्रवृत्त रहती है। और पति को सही राह पर ले आती है। परिणामस्वरूप अन्त में सम्मान, सौभाग्य और अनन्त सुख को पुनः प्राप्त करने में समर्थ हो सकती है। 'मुक्तिदूत' उपन्यास सत्य ही हिन्दी जैन उपन्यास साहित्य का एक बहुमूल्य रत्न कहा जा सकता है। सुकुमाल': ___ बाबू जैनेन्द्र किशोर ने इस छोटे से उपन्यास की रचना सन् 1905 में की थी। इसके उपोद्घात में स्वयं लेखक ने लिखा है कि-"इस उपन्यास में न तो प्रेमी तथा प्रेयसी की रसभरी कहानी हैं और न इसमें तिलिस्म तथा ऐयारी के लटके हैं। यह उपन्यास केवल पापों का निराकरण कर शिवरमणी (मुक्ति) से संयोग कराने में समर्थ हैं।" प्रारंभिक रचना होने से औपन्यासिक तत्वों की कमी 1. इसकी एक प्रति 'मोहनलाल जी जैन लायब्रेरी' भूलेश्वर, बम्बई से प्राप्त की गई थी।
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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