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आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य : सामान्य परिचय
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मुनियों का उल्लेखनीय योगदान रहता था, उसी प्रकार आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य सृजन में भी मुनियों का कम योगदान नहीं है। इसका प्रमुख कारण यह हो सकता है कि निरन्तर अध्ययन करने की उनको सुविधा प्राप्त होती है। दूसरी बात वर्षा ऋतु में स्थलान्तर न किये जाने पर एक ही स्थल पर ठहर कर लेखन कार्य करते रहते हैं। तीसरी बात किसी एक सम्प्रदाय या गच्छ के किसी मुनि ने कुछ रचा है-प्रकाशित करवाया है, तो अन्य संप्रदाय वाले भी कुछ न कुछ अवश्य लिखेंगे और प्रकाशित करवाएंगे। ऐसी स्पर्धात्मक भावना के कारण भी लिखने की प्रवृत्ति बनी रहती है। उपर्युक्त विवेचन से आधुनिक हिन्दी जैन काव्य का पर्याप्त परिचय प्राप्त हो जाता है। अब यहां आधुनिक हिन्दी जैन गद्य साहित्य की भी चर्चा कर लेना समीचीन होगा। आधुनिक हिन्दी जैन गद्य :
गद्य आधुनिक युग की सामाजिक, धार्मिक व राजनैतिक क्रांति के परिणामस्वरूप मानव जगत को मिली हुई अनमोल भेंट है। इस युग में गद्य को विचारवाहक के रूप में सर्वाधिक उपयुक्त समझा गया है, क्योंकि प्रास-अनुप्रास, छंद-ताल-लय किसी का बंधन न होने के साथ सोचने-विचारने की प्रक्रिया को यथार्थ ढंग से सुगमतापूर्वक प्रस्तुत करने की सुविधा इसमें उपलब्ध रहती है। इसीलिए पद्य के साथ-साथ गद्य का महत्व व प्रभुत्व बढ़ने लगा। गद्य में विचारों की अभिव्यक्ति सरलता से की जाती है। आधुनिक काल में हिन्दी जैन साहित्यकारों ने पद्यात्मक साहित्य की तुलना में गद्यात्मक साहित्य-सृजन विशाल मात्रा में किया है।
हिन्दी-जैन-साहित्य का निर्माण केन्द्र विशेषतः दिल्ली, आगरा, राजस्थान, एवं मध्यप्रदेश रहा है। अतः वहाँ की बोलियों का प्रभाव वहां वर्णित साहित्य पर पड़ना बहुत संभव है। प्राचीन गद्य के नमूने इसी कारण ढूंढारी प्रभावित हिन्दी भाषा में उपलब्ध होते हैं। लेकिन आधुनिक युग की साहित्यिक भाषा खड़ी बोली को ही माध्यम के रूप में स्वीकार किये जाने से प्रादेशिक भाषाओं का प्रभाव अत्यन्त कम रहा है। आधुनिक काल में जैन-गद्य साहित्य अपनी बहुविध विधाओं में उपलब्ध होता है। गद्य साहित्य नाटक, उपन्यास, निबन्ध, कथा-साहित्य, जीवनी एवं आत्मकथा आदि विविध स्वरूपों में प्राप्त होता है। 'जैन लेखकों ने उपन्यास या नाटक के रूप में प्राचीन काल में गद्य नहीं लिखा। कुछ कथाएँ गद्यात्मक रूप में अवश्य लिखी गई। प्राचीन संस्कृत और प्राकृत के कथा-ग्रन्थों के अनुवाद भी ढूंढारी भाषा में लिखे गये, जिससे सर्व साधारण इन कथाओं को पढ़कर धर्म-अधर्म के फल को समझ सके। लेकिन आधुनिक