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________________ 108 आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य युग में अनुवाद के साथ नूतन गद्य-साहित्य निर्माण का कार्य भी चलता रहा है। जैन लेखकों ने मानव-कल्याण की भावना से प्रेरित हो उपयोगिता पूर्ण साहित्य की रचना मुख्य रूप से की है। इस शताब्दी में मानव-भावों एवं विचारों की जितनी अभिव्यक्ति गद्य में संभव हई, उतनी पद्य में नहीं। क्योंकि आज का मनुष्य भावना एवं तर्क के सामंजस्य द्वारा भौतिक विकास के लिए गद्य को उचित माध्यम स्वीकार करता है। आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य की प्रारंभिक स्थिति पर प्रकाश डालते हुए डा. नेमिचन्द्र लिखते हैं कि-"जीवन की विवेचना तथा मानव की विभिन्न समस्याओं का सर्वांगीण और सूक्ष्म ऊहापोह गद्य के माध्यम द्वारा ही संभव है। इस बीसवीं शताब्दी में विषय के अनुरूप गद्य और पद्य के प्रयोग का क्षेत्र निर्धारित हो चुका है। कथा-वर्णन, यात्रा-वर्णन, भावों के मनोवैज्ञानिक विश्लेषण, समालोचना, प्राचीन-गौरव-विवेचन, तथ्य-निरूपण आदि में गद्य-शैली अधिक सफल हुई है। इस शताब्दी में निर्मित जैन गद्य साहित्य का समस्त साहित्य-कोष किसी भी रत्न-राशि से कम मूल्यवान और चमकीला नहीं है। यद्यपि इस शताब्दी के आरम्भ में जैन गद्य साहित्य का श्रीगणेश वचनिकाओं, निबंध और समालोचनाओं से होता है, तो भी कथा-साहित्य और भावात्मक गद्य साहित्य की कमी नहीं है। आरम्भ के सभी निबन्ध धार्मिक, सांस्कृतिक और खण्डन-मण्डनात्मक ही हुआ करते थे। कुछ लेखकों ने प्राचीन धार्मिक ग्रन्थों का हिन्दी गद्य में मौलिक स्वतंत्र अनुवाद भी किया है, पर इस अनुवाद की भाषा और शैली भी 18वीं और 19वीं शती की भाषा और शैली से प्रायः मिलती-जुलती है।" आधुनिक काल में गद्य साहित्य का प्रारम्भ धार्मिक रचनाओं के अतिरिक्त कथा-साहित्य के रूप में भी हुआ था, जिसका क्रमशः परिष्कृत भाषा-शैली में विकास हुआ। आधुनिक हिन्दी जैन गद्य ने युगानुरूप भाषा-शैली में अपना रूप सजाया-संवारा है। उपन्यास : आधुनिक हिन्दी साहित्य में कथा-साहित्य के अन्तर्गत ही उपन्यास तथा कहानी का समायोजन किया जाता है। अतः कथा साहित्य को पृथक् विधा नहीं माना जाता, जबकि जैन साहित्य में कथा साहित्य और उपन्यास दोनों को भिन्न-भिन्न स्वीकारा जाता है। क्योंकि उपन्यास की कथावस्तु पौराणिक, 1. डा. नेमिचन्द्र शास्त्री-आधुनिक हिन्दी साहित्य का परिशीलन-पृ. 40. 2. डा० नेमिचन्द्र शास्त्री-हिन्दी जैन साहित्य का परिशीलन-पृ. 51.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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