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________________ आधुनिक हिन्दी - जैन साहित्य व साहित्यिक शैली में मिलते हैं। लेकिन आज यह 'भजनावली' अनुपलब्ध है। केवल वर्णी जी की आत्मकथा 'मेरी जीवन गाथा' में सविस्तृत उल्लेख प्राप्त हुआ है। 106 आधुनिक काल में जैन काव्य साहित्य सम्बन्धी एक विशेष प्रवृत्ति यह भी दृष्टिगत होती है कि मध्यकालीन भक्त कवियों की रचनाओं को पुनः संपादित किया जाता है। इससे श्रेष्ठ कवियों की उत्तम रचनाओं को जनता के सामने प्रस्तुत कर उनका रसास्वादन कराया जाता है, तथैव अपरिचित कवि की रचनाओं को प्रकाश में लाया जाता है। इस प्रवृत्ति के अन्तर्गत मोहनलाल शास्त्री ने 'जैन-भजन-संग्रह- भाग - 1-2' संपादित किये हैं। तथा श्रीयुत भागचन्द जी जैन ने 'भागचन्द पद - संग्रह' में मध्ययुग के जैन कवियों की भक्तिपरक रचनाओं को संकलित किया है। श्रीयुत अगरचन्द नाहटा और भंवरलाल नाहटा ने 'ऐतिहासिक - जैन - काव्य संग्रह' में मध्यकालीन कवियों की ऐतिहासिक कृतियों को संकलित किया है। ऐसी रचनाओं में काव्यत्व के साथ-साथ इतिहास की कोई न कोई घटना, प्रसंग या व्यक्ति जुड़े होने से तत्कालीन धार्मिक, सामाजिक या राजकीय इतिहास पर भी यत्किंचित् प्रकाश उपलब्ध हो जाता है। ऐसे ऐतिहासिक काव्यों को संपादित व प्रकाशित करते समय संपादकों को सतर्कता व कुशलता रखनी पड़ती है। राजकुमार जैन ने भी 'अध्यात्मपदावली' में प्रसिद्ध प्राचीन कवियों की कृतियों को प्रकाशित किया है। इसमें उन्होंने इस काल की ऐतिहासिक, धार्मिक परिस्थितियों का भी विवेचन कर दिया है, ताकि इसी सन्दर्भ में कवियों की रचना का मूल्यांकन या समीक्षा की जाय। कभी-कभी एक ही प्राचीन कवियों की रचनाओं को संकलित किया जाता है। मध्यकालीन भक्त कवि धानतराय ने 'धानतविलास' से अच्छे चुने हुए पदों का संग्रह 'जैन- पद - संग्रह' के अंतर्गत किया गया है। इसी प्रकार पं० ज्ञानचन्द्र जैन ने ‘जैन-शतक' में कवि भूधरदास जी के 'जैन - शतक' की सुन्दर रचनाओं को संपादित किया है। भूधरदास जी का यह शतक हिन्दी जैन साहित्य ' में अत्यन्त प्रसिद्ध है और जैन समाज में समादृत व लोकप्रिय है। यहां ऐसी रचनाओं का विवरण देने का उद्देश्य न होकर केवल एक प्रवृत्ति की ओर इंगित मात्र करने का है। आधुनिक काल में न केवल मध्यकालीन बल्कि अपभ्रंश - प्राकृत की रचनाओं को भी हिन्दी में अनुवादित, पुनः संपादित करने की प्रवृत्ति स्पष्ट दीखती है। प्राचीन एवं मध्यकालीन हिन्दी जैन साहित्य में जिस प्रकार आचार्यों तथा 1. श्री गणेशप्रसाद वर्णी- मेरी जीवन गाथा, पृ० 62.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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