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________________ आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य : सामान्य परिचय 105 मयूर-दूत : प्राचीन जैन काव्य ‘इन्द्रदूत-काव्य" की शैली पर सं. 1993 में 'मयूर-दूत' काव्य का प्रणयन मुनि धुरन्धर विजय ने किया। इसमें 180 पद्य हैं, तथा शिखरिणी छन्द का विशेष प्रयोग किया गया है। मुनि धुरन्धर जी ने कपड़वंज में चातुर्मास के समय जामनगर स्थित अपने गुरु के पास मयूर के द्वारा संदेश भेजा है। इस संदेश में उन्होंने अपनी गूढ भक्ति व वंदना के भाव अभिव्यक्त किये हैं। कपड़वंज (गुजरात) से जामनगर (सौराष्ट्र) के बीच के प्राकृतिक स्थलों का कवि ने सुन्दर वर्णन किया है, जिससे कवि की कवित्व-शक्ति का परिचय प्राप्त होता है। आदिकाल तथा मध्यकाल में दूत-काव्य की परम्परा विशेष दिखाई पड़ती थी, लेकिन आधुनिक काल में दूत-काव्य का प्रवाह स्थगित हो गया है। नेमवाणी : ___ मुनि नेमिचन्द्र जी के भाववाही सुन्दर धार्मिक भजनों का संग्रह 'नेमवाणी' भी इसी काल की रचना है। इसमें तीर्थंकरों की वंदना-स्तुति आलंकारिक शैली तथा भावपूर्ण रूप से की गई है। अन्धा चांद : मुनि रूपचन्द जी की यह प्रथम रचना होने पर भी प्रतीकात्मक शैली एवं आधुनिक परिवेश में लिखी गई सुन्दर कृति है। इस काव्य-संकलन की यह विशेषता है कि इसमें धार्मिक संदर्भ या पौराणिक कथावस्तु किसी का आधार नहीं ग्रहण किया गया है। मुक्तक रचनाओं में कवि की भावोर्मि छलक पड़ती है। कवि की गंभीर भावानुभूति से युक्त छोटे-छोटे मुक्तक आकर्षक लगते हैं। इसी युग में प्रसिद्ध जैन तत्व चिन्तक कवि श्रीमद् राजचन्द्र की 5-6 हिन्दी कविताएं भी उपलब्ध होती हैं। इनमें गुरु-महात्म्य तथा आत्म ज्ञान प्राप्त करने की महत्ता का वर्णन किया गया है। उनकी कविताओं पर चिन्तन का प्रभाव स्पष्ट लक्षित होता है। भाषा शैली सरल होने पर भी आकर्षक है। पं. गोपाल दास जी बरैया की 'भजनावली' में छोटे-छोटे भजन भावपूर्ण 1. द्रष्टव्य-जैन साहित्य बृहत् इतिहास-सं० डा. गुलाब चौधरी, पृ० 553, (षष्ठम् भाग)। 2. द्रष्टव्य-जैन साहित्य का बृहत् इतिहास-सं० डा. गुलाब चौधरी, पृ. 553, (षष्ठम् भाग)। 3. प्रकाशक-भारतीय ज्ञानपीठ-दिल्ली।
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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