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________________ आधुनिक हिन्दी - जैन साहित्य उपयोग में लाने के लिए ढूंढारी भाषा से प्रभावित हिन्दी में छोटी-बड़ी बहुत सी पुस्तकें प्रकाशित की जाती है। प्रभु की मूर्ति के सामने ऐसी स्तुति परक रचना गा-गाकर भक्त का चित्त आनन्द से विभोर हो उठता है तथा शान्ति प्राप्त करने की कोशिश रहती है। 104 श्रीपाल चरित' : कवि परिमल ने सं. 1956 में इसकी रचना की थी, लेकिन प्रकाशित नहीं की थी। उनकी हस्तप्रत को शुद्ध करके बाबू ज्ञानचन्द जैनी ने ईस्वी सन् 1904 में प्रकट किया। प्रारंभ में कवि ने तीर्थंकारों और गुरु की वंदना की है। जैन धर्म, समाज व साहित्य में श्रीपाल राजा तथा मैनासुंदरी की कथा अत्यन्त प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय है। स्वकर्मों के कारण अनेकानेक कष्ट-रोगादि को समताभाव से सहन कर एकनिष्ठा से धर्म चक्र की आराधना कर तपस्या के द्वारा कर्मों के क्षय (निर्जरा) के उपरान्त दंपत्ति को सुख प्राप्ति होती है। लेकिन तभी ज्ञान - नेत्र खुल जाने से संसार की असारता देख दोनों वैराग्य ग्रहण करते हैं। श्रीपाल - मैना की प्रसिद्ध कथावस्तु लेकर कवि ने पद्य - शैली में इस काव्य ग्रन्थ की रचना की है। श्रीपाल राजा का रास' : श्रीपाल - मैना की विषय वस्तु से सम्बन्धित एक अन्य रचना मुनि श्री शिवविजय ने दोहा-चौपाई शैली में की है। कथा वस्तु वही प्राचीन है तथा भाषा-शैली पर गुजराती भाषा का काफी प्रभाव है। विचार- चन्द्रोदय : ईस्वी सन् 1909 में कवि पिताम्बर जी ने इसकी रचना की है, जिसकी भाषा गद्य-पद्य मिश्रित है। छोटी-छोटी कथाओं के माध्यम से साहित्यिक ढंग से धार्मिक चर्चा के बीच-बीच में मनहर, रोला आदि छन्दों में कविताएं कवि ने रची हैं, जिनका प्रमुख विषय गुरुवन्दना एवं महत्त्व से सम्बन्धित है। सुबोध कुसुमावली : कविवर मुनि नानचन्द्र जी के सुन्दर भावात्मक स्तवनों की यह रचना है। इसके प्रारंभ में गद्य में छोटी-छोटी कथाओं में धार्मिक उपदेश हैं। स्तवनों में विविध राग-रागिनियों का प्रयोग किया गया है। आशावरी, बिलावल, बिहाग, कानड़ आदि रागों का कवि ने कुशलता पूर्वक प्रयोग किया है। 1. आत्मानंद जैन ज्ञान मंदिर - बड़ौदा । 2. जैन आत्मानंद सभा - भावनगर ।
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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