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आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य : सामान्य परिचय
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के उस पथ पर महावीर चल पड़े, जिस पर चलने से वे मनुष्य से तीर्थंकर बन
पाये।
इस खण्ड काव्य में कवि ने मातृ हृदय के स्नेह और वात्सल्य के भावों का सुन्दर निरूपण किया है। साथ ही कुमार के अटल निश्चय तथा उत्कृष्ट विराग भावना को भी कवि ने उसी सहजता से मूर्तिमन्त किया है। इस कोटि का यह प्रथम खण्डकाव्य होने से कहीं-कहीं त्रुटि का रह जाना स्वाभाविक है। आधुनिक विचारधारा से प्रभावित लोकतंत्र, नारी की विवश स्थिति, सामाजिक असमानता का कवि ने मार्मिक वर्णन किया है। कुमार की धीर-गंभीर वाणी में इन समस्याओं का सुझाव भी प्रस्तुत किया है कि न्याय, समानता, अहिंसा और करुणा के प्रेममय शस्त्र से ये विषमताएं दूर की जा सकती है। वर्तमान राजकीय विचारधारा से कवि काफी प्रभावित प्रतीत होता है। क्योंकि सत्ता से उत्पन्न दोषों का विस्तृत वर्णन इसमें किया है। समानता, स्नेह और सहानुभूति के सुखद, शीतल छींटों से यह काव्य पूर्णतः ओत-प्रोत है। अतः भावों की विशालता व गहराई जगह-जगह पर प्रकट होती है। भाषा की स्वाभाविकता एवं लाक्षणिकता पर भी कवि ने यथेष्ट ध्यान दिया है। भाषा शुद्ध एवं साहित्यिक है। खण्ड काव्य छोटा होने पर भी विचार, भावानुभूति, चरित्र-चित्रण, शैली व भाषा सभी दृष्टियों से यह सफल काव्य कहा जायेगा। इसकी शैली रोचक, तर्कपूर्ण व ओजप्रधान है। छन्दों का बन्धन नहीं स्वीकारा है, फिर भी भावों के प्रवाह में छन्द बनते गये हैं। अतः खण्ड काव्य में गत्यावरोध नहीं है। अंजना-पवनंजय : _ 'अनेकान्त' द्वि-मासिक शोध पत्रिका के सन् 1973 के अप्रैल के अंक में छपा हुआ यह खण्ड काव्य श्री भंवरलाल शेठी ने लिखा है। यह रचना किस सन् में लिखी गई है, इसका उल्लेख उक्त पत्रिका में नहीं है। किंतु संभावना यही प्रतीत होती है कि इसकी रचना 1970 ई. के आस-पास हुई होगी। प्रकाशन के क्रम में आते-आते 1973 ई. आ गई होगी इसी से यह ग्रन्थ यहां उल्लिखित है। 123 पदों में रचित इस खण्ड काव्य में कवि ने जैन धर्म के एवं समाज में प्रसिद्ध अंजना-पवनंजय की कथा को आबद्ध किया है। यह काव्य वर्णनात्मक है, इसमें मार्मिक अनुभूतियों की विशद्-गहन अभिव्यक्ति कम है।
राजा महेन्द्र अपनी सुयोग्य राजकुमारी अंजना का ब्याह राजा प्रह्लाद एवं रानी केतुमती के सुयोग्य वीर पुत्र पवनंजय के साथ बड़े उल्लास से करते हैं। लेकिन पवनंजय अपने अहं, वहम के कारण निर्दोष अंजना का शादी के बाद तुरन्त परित्याग कर देता है। अंजना अपने दृढ़-विश्वास एवं पति प्रेम के कारण