________________
96
आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
में 'भगवान महावीर' नामक महाकाव्य भी प्रकाशित हुआ है। उसमें उन्होंने भगवान महावीर की सम्पूर्ण जीवनी को अंकित किया है, जब कि इस खण्ड काव्य में कुमार वर्द्धमान के विराग का प्रसंग लिया है।
इस काव्य में कवि ने भगवान महावीर के अटल विराग-भाव को काव्यात्मक ढंग से व्यक्त किया है। अहिंसा, करुणा, सहानुभूति, नि:स्वार्थ त्याग एवं मूक प्राणी के प्रति अनन्य कोमल-व्यवहार का अमर संदेश इसमें गूंजता है। यौवन और समृद्धि से संपन्न होने पर भी कुमार ने विवाह प्रस्ताव छोड़कर प्राणियों के कल्याण का दायित्व संभाला। वस्तुतः इसमें काव्यानंद के साथ आत्मानंद का भी कवि ने सुन्दर समन्वय किया है। दुःखी, विवश प्राणी के प्रति अनुराग व करुणा की भावना से प्रेरित होकर सांसारिक सुख-वैभव का त्याग कर जगत-कल्याण के प्रयत्नों के प्रति अग्रसर होने वाले कुमार वर्धमान का 'विराग' यहां मूर्तिमन्त हो उठता है। धीरोदात्त नायक की वैराग्य-भावना का कवि ने खण्डकाव्य में सफल चित्रण किया है। एकाध जगह पर राजा सिद्धार्थ का चरित्र-चित्रण अवश्य अस्वाभाविक प्रतीत होता है, जब वे पुत्र के सामने यौवन, सौन्दर्य, दाम्पत्यजीवन तथा वैभव विलास का वर्णन कर पुत्र को विवाह के लिए उत्साहित होने की विनती करते हैं। लेकिन अटल-प्रतिज्ञ महावीर का मन किसी भी प्रलोभन की ओर आकृष्ट नहीं होता है, अतः विवश होकर पिता को वापस आना पड़ता है और रानी त्रिशला को सारी बात बताते हैं। माता त्रिशला अगाध विश्वास लिए पुत्र को मनाने-राजी करने के लिए कुमार के पास आती है। मां अपनी चिर आकांक्षा, मातृहृदय के अगाध प्यार-वात्सल्य
और अंतिम अस्त्र आंसू का उपयोग (प्रयोग नहीं) भी कुमार के सामने करती है, लेकिन कुमार तो हिमालय की भांति अडिग है अपने निर्धार में। उनका एक ही सरल उत्तर है कि 'मां! इच्छाएं तो अनन्त है-वह कभी भी तृप्त होने वाली नहीं हैं। नारी के समान ही विश्व के ये मूक प्राणियों का भी मेरे ऊपर अधिकार है, जिनकी गर्दन पर दुधारी तलवार चल रही है। निरर्थक बलि बनते प्राणियों की करुण पुकार सुनकर भगवान कैसे राजमहल में चुपचाप वैभव भोग सकते हैं? उन्हें तो समाज की दिशाओं में क्रान्ति लानी थी, धार्मिक आडम्बर तथा यज्ञ-योग में निर्दोष पशु-बलि के क्रूर विधान को रोकने के लिए अहिंसक आंदोलन जगाना था। मनुष्य के तप्त हृदय में शांति, करुणा व प्रेम की अखण्ड धारा बहानी थी। इस उद्देश्य प्राप्ति में अवरोधक राजमहल, रत्नाभूषण सुख-वैभव
और परिवार के तीव्र-स्नेह को त्याग कर तपस्या, चिन्तन और क्षमापूर्ण व्यवहार 1. द्रष्टव्य-विराग-पृ. 30.