SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आधुनिक हिन्दी - जैन साहित्य शास्त्र और साहित्य को रचा जाता था। छन्द, लय एवं संगीत के कारण पद्य-साहित्य कंठस्थ करने में सरल तथा आकर्षक रहता है। हमारा प्राचीन स्मृत व श्रुत साहित्य पद्य में ही लिखित रहा है। आधुनिक युग में भी यही पद्य की परम्परा आज भी उपलब्ध होती है। पद्य की रागात्मकता एवं भाव-विभोरता का महत्व प्रत्येक युग में अक्षुण्ण रहता है। आज के युग में गद्य का प्रसार-प्रचार अत्यधिक हो पाया है, उसकी महत्ता भी सर्व स्वीकृत है। आधुनिक युग को 'गद्य-युग' का पयाय भी हम कह सकते हैं। फिर भी पद्य के प्रवाह में जीवन की गहराई एवं अनुभूति का उद्रेक जिस स्वाभाविकता व रोचकता से हो पाता है, वह गद्य में कहां संभव ? पद्य की लोकप्रियता कभी कम होने वाली चीज नहीं है। 88 आधुनिक युग में निर्मित हिन्दी जैन साहित्य के अन्तर्गत जो पद्यात्मक रचनाएं हैं, वह तीन श्रेणियों में विभाजित की जा सकती हैं (1) महाकाव्य कृतियाँ । (2) खण्डकाव्य कृतियाँ | (3) मुक्तक काव्य कृतियाँ । महाकाव्यों के रूप में आलोच्य काल में दो उपलब्ध कृतियां हैं - एक श्री अनूप शर्मा कृत 'वर्धमान' महाकाव्य तथा दूसरी है श्री मूलदास नीमावत कृत भगवान महावीर को ही आलम्बन बनाकर रची गई कृति 'वीरायण' । प्रथम हम इन्हीं की चर्चा करेंगे, तदुपरान्त खण्ड काव्यों एवं मुक्तक रचनाओं पर विचार करेंगे। वर्द्धमान : 1 महाकवि अनूप शर्मा ने अपने प्रसिद्ध महाकाव्य 'सिद्धार्थ' की सफल रचना के उपरांत भगवान महावीर को नायक बनाकर 'वर्धमान' महाकाव्य की रचना सन् 1951 में की थी। इन दोनों महाकाव्यों के चरित नायक श्रमण परम्परा ही दो महान विभूतियां हैं तथा इन दोनों कृतियों में बौद्ध एवं जैन दर्शन की काव्यात्मक अवतारणा हुई है। आधुनिक युग में जैन तीर्थंकर भगवान महावीर को लक्ष्य में रखकर रचा गया यह सर्वप्रथम सफल महाकाव्य कहा जायेगा । इस कृति के प्रणयन से अनूप जी की सर्व-धर्म-समन्वय भावना का द्योतन होता है । कविवर अनूप स्वयं ब्राह्मण धर्म के अनुयायी होते हुए भी तीर्थंकर महावीर के प्रति जो अपनी काव्यांजलि अर्पित की है, उससे न केवल 1. प्रकाशक- भारतीय ज्ञानपीठ - दिल्ली - जुलाई 1951. -
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy