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आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य : सामान्य परिचय
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आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य में भी युगानुरूप परिवर्तन हुआ है। चाहे यह परिवर्तन वैचारिक क्रान्ति या नये आदर्शों की स्थापना के रूप में स्पष्ट लक्षित न हुआ हो तथापि आदर्शात्मक विचारधारा को स्थापित करने में उसका योगदान निर्विवाद है। डा. नेमिचन्द्र शास्त्री आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य की विशेषता के सन्दर्भ में लिखते हैं कि-'हिन्दी जैन साहित्य की पीयूषधारा कल-कल निनाद करती हुई अपनी शीतलता से जन-मन के संताप को आज भी दूर कर रही हैं। इस बीसवीं शताब्दी में भी जैन-साहित्य निर्माता पुराने कथानकों को लेकर ही आधुनिक शैली और भाषा में ही सृजन कर रहे है। भक्ति, त्याग, वीर-नीति, श्रृंगार आदि विषयों पर अनेक लेखकों की लेखनी अविराम रूप से चल रही है। देशकाल और वातावरण का प्रभाव इस साहित्य पर भी पड़ा है। अतः पुरातन उपादानों में थोड़ा परिवर्तन कर नवीन काव्य-भवनों का निर्माण किया जा रहा है" आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य के शैली-रूप के सन्दर्भ में यह कथन प्रायः यथार्थ है, क्योंकि विषय वस्तु रूपी कलेवर वही रहा, रूप केवल बदल गया। इस विषय में प्रसिद्ध जैन-विद्वान पं० सुखलाल जी ने लिखा है कि-"जैन परंपरा ने विरासत में प्राप्त तत्वज्ञान और आचार को बनाये रखने में जितनी रुचि ली है, उतनी नूतन सर्जन में नहीं ली।' पं० सुखलाल जी का यह कथन आधुनिक युगीन हिन्दी जैन साहित्य के सन्दर्भ में वैसे ठीक प्रतीत होता है कि इस युग में प्राचीन ग्रन्थों को अनुवादिक, पुनः मुद्रित संपादित करने के जितने प्रशंसनीय प्रयत्न किये गये हैं, उतने नूतन साहित्य-सृजन के लिए नहीं किये गये हैं। फिर भी गद्य-साहित्य की विविध विधाओं की रचनाएं विपुल संख्या में उपलब्ध इस युग में हुई है, यह महत्वपूर्ण विषय है। आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य :
पिछले अध्याय में हमने हिन्दी जैन साहित्य की समृद्ध परम्परा का अवलोकन करते हुए आधुनिक युग के (परिवर्तन काल-संवत् 1900 के बाद) साहित्य का स्पर्श किया था। यहां हम इस युग की हिन्दी जैन रचनाओं का संक्षिप्त परिचय प्राप्त कर लेना उपयुक्त समझेंगे। इससे एक समग्र दृष्टि का निर्माण हो सकेगा। इन रचनाओं का विशिष्ट अध्ययन पृथक् अध्याय में किया जायेगा। सर्वप्रथम हम पद्य रूप में लिखित रचनाओं की चर्चा करेंगे। पद्य:
हार्दिक अनुभूतियों से प्रसून पद्य सदैव रस-सृष्टि निष्पन्न करने में समर्थ रहता है। मुद्रण यंत्र की सुविधा प्राप्त न होने से आदिकाल से पद्य में ही समस्त 1. डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री-हिन्दी जैन साहित्य-परिशीलन-भाग 2, अध्याय-8 पृ० 19.