SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य : सामान्य परिचय 89 कवि की व्यक्तिगत धार्मिक सहिष्णुता का ही बोध होता है, वरन् भारत की उस महान संस्कृति का पृष्ठ हमारे सामने पुनः भास्वरित हो जाता है, जिसके मूल में सभी धर्मों के प्रति श्रद्धा, आदर और सम्मान की महती भावना निहित है। वे हिन्दी साहित्य के तो यशस्वी कवि है ही। इस रचना के द्वारा वे हिन्दी के जैन साहित्य के भी अग्रिम पंक्ति के कवि सिद्ध हुए हैं। इस काव्य में जैन धर्म की मर्यादाओं के रहने के बावजूद भी अनूप जी ने जैन धर्म के त्यागी-विरागी तीर्थंकर के चरित्र को उभारा है तथा दार्शनिक विचारधारा को भगवान महावीर की जीवनी के द्वारा सुन्दर काव्यात्मक स्वरूप प्रदान किया है। इसकी विस्तृत चर्चा हम अगले अध्याय में करेंगे। महाकाव्य में सम्पूर्ण जीवन को प्रतिबिंबित किया जा सकता है, अत: वह विस्तृत फलक्रम जीवन की विशद् व्याख्या करती है। महाकाव्य जीवन और जगत के विविध पहलुओं को स्पर्श कर मानव हृदय की अनुभूतियों को स्पंदित करने में सफल रह सकता है। महाकवि अनूप शर्मा ने भी 'वर्धमान' की रचना में भगवान महावीर की जीवनी को प्रारंभ से लेकर अन्त तक वर्णित कर अन्य अधिकाधिक कथाओं को भी इसमें समाविष्ट किया है। 17 सर्गों में विभक्त इस महाकाव्य को कथा-वस्तु, वर्णन, रस व नेता सभी दृष्टियों से सफल कहा जा सकता है। कवि ने पांच सर्ग में भगवान महावीर के माता-पिता रानी त्रिशला एवं राजा सिद्धार्थ के सोहार्दमय दाम्पत्य जीवन का सुन्दर वर्णन किया है, साथ ही क्षत्रिय-कुण्ड नगरी की शोभा, सिद्धार्थ की महानता, पौरुष एवं महारानी त्रिशला के सौन्दर्य का भी बहुत ही सुन्दर वर्णन प्रस्तुत किया है। यथा सरोज-सा वक्त्र, सुनेत्र-मीन से सिवार-से केश, सुकंठ कम्बु-सा। उरोज ज्यों कोक, सुनाभि भोर-सी तरंगिता थी त्रिशला तरंगिणी॥ (55181) उसी प्रकार राज दम्पति का दाम्पत्य व प्रेम कितना ऊंचा उठा है प्रभो! मुझे हो किस भांति चाहते? यदेव निश्रेयस चाहते सुधी प्रिये। मुझे हो किस भांति चाहती। यदेव साध्वी पद पार्श्वनाथ के।। (158-76). इन्हीं सर्गों में रानी त्रिशला के 14 शुभसूचक स्वप्नों एवं उनके फलों की चर्चा विस्तार से की गई है। महावीर के जन्म पूर्व गर्भ-परीक्षा, त्रिशला की दिनचर्या, अन्त:पुर के नृत्य-वाद्य एवं संगीत का कार्यक्रम, उपवन-सौंदर्य तथा
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy