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________________ आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य आधुनिकता का काल सापेक्ष स्वीकारते हुए दिनकर जी अपनी विचारधारा व्यक्त करते हुए लिखते हैं-'आधुनिकता कोई शाश्वत मूल्य नहीं है। वह तो समय सापेक्ष धर्म है। स्वतंत्रता के बाद आधुनिकता के सन्दर्भ में यह प्रश्न अत्यन्त प्रखर हो उठा है कि आधुनिकता क्या चीज है, कहां से और कैसे प्राप्त हुई है और कैसी +++ आधुनिकता का लक्ष्य है कि सत्य की खोज में वह एक मात्र प्रमाण बुद्धि को मानती है, और अन्धविश्वास अथवा कच्चे विश्वास के साथ वह कभी समझौता नहीं करती। श्रद्धा का प्रभुत्व और उसका हस्तक्षेप, आधुनिकता को दोनों अग्राह्य है। उपर्युक्त विचारधारा से यह स्पष्टतः फलित होता है कि आधुनिकता रूढिबद्धता तथा प्राचीनता को अस्वीकार कर नये विचार, नये आयाम, अभिगम एवं नयी दिशाओं को ग्रहण कर मनुष्य को गतिशील बनाने के लिए प्रेरित करती है। नये युग के प्रारंभ में साथ ही नये विचार व प्रवृत्तियों का सूत्रपात प्रारंभ होता है, नये-नये वातायन की खोज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में हम उत्साह के साथ करने लगते है। समूचे राष्ट्र के जीवन में चेतना पैदा कर रूढ़ विचारधारा व संकीर्ण जीवन-पद्धति को मुक्त करने में आधुनिकता का प्रभाव स्पष्ट फलित होता है। फलत: मनुष्य के जीवन परक दृष्टिकोण में भी आमूल परिवर्तन आ जाना सहज है और वह साहित्य में भी प्रतिबिंबित हुए बिना नहीं रहता। हमने देखा कि वैसे प्रत्येक युग अपने अतीत से आधुनिक रहता है लेकिन जिस अर्थ में हम उसे स्वीकारते हैं वह 'आधुनिक' शब्द प्रयोग विशेषकर इसी युग की देन है। अत: यह आधुनिकता राष्ट्र व साहित्य में कब से और किस रूप में व्यक्त होती है इस पर संक्षिप्त विचार करना असमीचीन नहीं रहेगा। भारतीय इतिहास में औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् मुगल सल्तनत जब अपने विनाश की ओर जा रही थी, तब अंग्रेजों के भारत में व्यापारी बनकर आने के साथ आधुनिकता का उन्मेष दिखाई देने लगता है, क्योंकि टेनिसन के शब्दों में 'पुरानी व्यवस्था बदल कर अपना स्थान नई व्यवस्था को दे देती है, यही आधुनिकता का सूत्रपात है।' और परम्परा के मुताबिक प्राचीन परिपाटी का पट-परिवर्तन होकर नई शासन व्यवस्था भारत के राजकीय रंगमच पर अपना स्थान ग्रहण करती है। औरंगजेब के शासन तक एक केन्द्रीय सूत्र में बंधा भारत उसकी मृत्यु के पश्चात् केन्द्रीय सूत्र से शिथिल ही नहीं, वरन् विच्छिन्न भी हो गया और देश में अराजकता की स्थिति फैल गई। 'इस परिवर्तन के साथ 1. दिनकर जी : साहित्यमुखी-शीर्षकयुक्त चिन्तन-अध्याय, पृ॰ 32.
SR No.022849
Book TitleAadhunik Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaroj K Vora
PublisherBharatiya Kala Prakashan
Publication Year2000
Total Pages560
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size39 MB
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