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आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य : सामान्य परिचय
विदेशी व्यापारियों के राजनीतिक रंग मंच पर धीरे-धीरे प्रवेश को आधुनिक युग की नेपथ्य सूचना कहना चाहिए।" अंग्रेजों ने संपूर्ण भारत पर उसके ही धन-बल-दल से कूटनीति के द्वारा एकाधिकार प्राप्त कर लिया। शासन पद्धति को सरल-सुगम बनाने के लिए अंग्रेजी पढ़ा-लिखा मध्यम वर्ग तैयार किया, जो अंग्रेजी सभ्यता से प्रभावित बना रहा। सम्पर्क की सुविधा के लिए रेल, तार, छापाखाना आदि वैज्ञानिक आविष्कारों का प्रारंभ कर दिया। अपनी सुविधा व व्यवस्था के हेतु डाले गये ये साधन ही भारत में क्रान्ति की ज्वाला चारों और फैलाने में विशेष सहायक हुए। 'अंग्रेजी राज्य की स्थापना के फलस्वरूप भारतीय जीवन को भारी क्षति उठानी पड़ी, इसमें तो कोई सन्देह प्रकट नहीं किया जा सकता, किन्तु घुणाक्षर न्याय के अन्तर्गत ही सही, उसके लाभ भी हुए, यह निर्विवाद है। आधुनिक नवीन शिक्षा और प्रेस, रेल, तार तथा अन्य वैज्ञानिक आविष्कारों के फलस्वरूप भारतीय जीवन का चौमुखी संस्कार किया जाने लगा। मध्ययुगीन परंपराओं ने हमारे जीवन में जो निष्प्राणता, निष्क्रियता, अवरुद्धता और रूढ़ि चुस्तता पैदा कर दी थी, उन्हें समूल नष्ट कर देने का देश ने कठिन व्रत धारण किया। पौराणिक धर्मांधता, कर्मकाण्ड तथा बाह्याडम्बरों की जड़ें हिल उठी। जीवन के प्रति दृष्टिकोण में एक नवीनता एवं ताजगी दिखाई देने लगी। अब भारत में पौराणिकता के स्थान पर वैज्ञानिकता का, कट्टरता और धार्मिकता के स्थान पर मानवोचित उदारता, जीवन गत सत्य का अन्वेषण और नवीन मूल्यों एवं मानदण्डों की स्थापना का जैसा पुनीत प्रयास उन्नीसवीं सदी में दृष्टिगोचर होता है, वैसा पिछली कई शताब्दियों तक दृष्टिगोचर नहीं होता। इस प्रयास को देश के प्राचीन गौरव की स्मृति से बल प्राप्त हुआ था। इस समय बौद्धिक एवं मानसिक जागरूकता को ही 'भारतीय पुनरुत्थान' की संज्ञा प्रदान की जाती है। यूरोपीय औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप पाश्चात्य देशों के विचार क्षेत्र में जो क्रान्ति हुई थी, उसका प्रभाव ऐतिहासिक घटना-चक्र के कारण भारतीय जीवन पर पड़ना भी स्वाभाविक है। मध्यमवर्गीय जनता में शिक्षा का प्रचार-प्रसार होने के कारण ये भी नये-नये विचारों से तथा अपनी दीन-हीन स्थिति से प्रभावित होकर उत्साह से नयी प्रवृत्तियों को अपनाने लगी। इसमें धार्मिक-सामाजिक संस्थाओं के साथ
1. डा. विनयामोहन शर्मा संपादित 'हिन्दी साहित्य का बृहत् इतिहास' (अष्टम
भाग) प्रथम अध्याय-भारतेन्दु युग की सामान्य पृष्ठभूमि, पृ० 7. 2. द्रष्टव्य-हिन्दी साहित्य का बृहत् इतिहास-द्वितीय खण्ड-सं० डा. लक्ष्मीसागर
वार्ष्णेय-पृ. 232 (भारतेन्दु युग उपभाग)।