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10 भारतीय संस्कृति पर बौद्ध एवं
जैन परम्परा का प्रभाव
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
छठी शताब्दी ईसा पूर्व में विश्व में एक महान धार्मिक आन्दोलन हुआ। इसी युग में भारत में भी धार्मिक क्रान्ति हुयी। इसी युग में अनेक देशों के समाज में साधारणतया आध्यात्मिक एवं नैतिक अशान्ति हो गयी तथा अद्वितीय बौद्धिक एवं चिन्तन के आन्दोलन चले। परिणाम स्वरूप, समस्त विश्व में सुधारकों ने तत्कालीन धार्मिक व्यवस्था के विरोध में अपनी आवाज बुलन्द की तथा इस व्यवस्था को नवीन आधारों पर पुनर्जीवित करने का प्रयास किया। यूनान के द्वीप इओनिया में हिराक्लिटस (Heraclitus) ने नवीन सिद्धान्तों का उपदेश दिया। फारस देश के जरथुस्ट्र (Zoroaster) ने तत्कालीन धार्मिक अन्धविश्वासों का घोर विरोध किया। चीन में लोगों ने कानफ्यूशियस (Confuscius) के दार्शनिक सिद्धान्तों का स्वागत किया।
इस प्रकार यह वह युग था जब भारत में भी लोग प्राचीन दार्शनिक सिद्धान्तों से उकता गये थे और पूजन की समस्त विधियों तथा इस पार्थिव जीवन के कष्टों व आपत्तियों से मुक्ति पाने हेतु सतत् प्रयत्नशील रहते थे। धर्म एवं चिन्तन के क्षेत्र में नवीन नेताओं का प्रादुर्भाव हुआ और अनेक असामान्य चिन्तक सत्य की अनवरत खोज में संलग्न रहने लगे।
अतः यह धार्मिक आन्दोलन का युग था। प्राचीन व्यवस्था के विरुद्ध विद्रोह का युग था। यह विप्लव सामाजिक व्यवस्था की प्रामाणिकता, धार्मिक क्रिया विधियों, पुरोहितों की अपरिमित शक्ति एवं सुविधाओं तथा मरणासन्न संस्कृति के प्राणघातक भार के विरुद्ध था।