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श्रमण-संस्कृति
की विशेषताओं को प्रदर्शित करते हुए अपने तर्कों से एक दूसरे को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति ने अजातशत्रु को पितृहन्ता बना दिया। अपने इस घृणास्पद कृत्य पर अजातशत्रु प्रायश्चित्त करने भगवान बुद्ध की शरण में गया जिसका चित्रण भरहुत वेदिका पर हुआ है यह लेख भी उट्टङ्कित है -
अजातशत्रु भगवतो वन्दते ।
कतिपय विद्वानों का अनुमान है कि अजातशत्रु प्रारम्भ में जैन धर्म से प्रभावित था परन्तु कालान्तर में वह बौद्ध मतावलम्बी हो गया ।
ज्ञातव्य है कि मगध नरेश बिम्बिसार का विवाह वैशाली के लिच्छवि सरदार चेटक की पुत्री चेल्लना अथवा छलना के साथ भी हुआ था । वैशाली गणराज्य वज्जिसंघ का सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं सशक्त घटक था और वज्जिसंघ का ही एक महत्वपूर्ण घटक कुण्डग्राम के ज्ञातव्य क्षत्रियों का था, जिसमें महावीर स्वामी उत्पन्न हुए थे। यह स्वाभाविक था कि कुण्डग्राम के ज्ञातृक क्षत्रियकुल से सम्बद्ध होने के कारण वज्जिसंघ जैन धर्म से प्रभावित रहा हो।
अजातशत्रु द्वारा बौद्ध धर्म अंगीकार कर लेने की प्रतिक्रिया में सम्भव है जैनियों ने वज्जिसंघ को उसके विरुद्ध भड़का दिया हो जिसके कारण मगध एवं वैशाली राज्यों के मध्य प्रवाहित होने वाली गंगा नदी पर के बन्दरगाह एवं उसी के समीप की एक बहुमूल्य धातुओं की खान पर पूर्व काल से मगध एवं वैशाली की बराबर की हिस्सेदारी को समाप्त कर वैशाली ने एकाधिपत्य स्थापित कर लिया ।
दूसरी ओर पिता बिम्बिसार की हत्या हो जाने पर अपने को असुरक्षित समझ चेल्लना के दो पुत्र राजकुमार हल्ल एवं वेहल्ल पिता द्वारा उपहार स्वरूप प्रदासनित सेचनक हस्ति एवं 18 लड़ियों का स्वर्णहार लेकर अपने नाना चेटक की शरण में वैशाली पहुंच गये। अजातशत्रु द्वारा चेटक से हल्ल एवं वेहल्ल को उपहार की सामग्रियों के साथ मगध वापस भेजने की मांग को चेटक ने अस्वीकार कर दिया । अतः दोनों राज्यों के मध्य युद्ध अवश्यम्भावी हो गया ।
यह सुवदित है कि वैशाली वज्जिसंघ का केन्द्र था तथा वज्जिसंघ आठ