________________
बौद्ध एवं जैन धर्म का भारतीय संस्कृति में योगदान व्यवस्था की उत्पत्ति ऋग्वेद के पुरुष सूक्त के आधार पर हुई। वही बौद्धों ने कहा कि कर्म से ही मनुष्य की महानता सूचित होती है।
इन धर्मों के योगदान स्वरूप अब ब्राह्मणों का स्थान श्रमणों, मुनियों और भिक्षुओं ने ले लिया। इन श्रमणों में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र सभी वर्गों और जातियों के लोग सम्मिलित थे। अपने गुणों के ही कारण समाज में इनकी प्रतिष्ठा थी। धर्म का नेतृत्व ब्राह्मण जाति के हाथ से निकलकर अब ऐसे समुदायों में आ गया था जो घर गृहस्थी छोड़कर मनुष्य मात्र की सेवा का व्रत ग्रहण करते थे। निःसंदेह, यह एक बहुत बड़ी क्रान्ति थी।
भारत के सर्व साधारण गृहस्थ सदा से अपने कुल क्रमानुपात धर्म का पालन करते रहे हैं। प्रत्येक कुल के अपने देवता, रीति-रिवाज और अपनी परंपराएं थी, जिनका अनुसरण सब लोग मर्यादा के अनुसार करते थे। ब्राह्मणों का वे आदर करते थे, उनका उपदेश सुनते थे, और उनके बताये कर्मकाण्ड का अनुष्ठान करते थे। ब्राह्मण एक ऐसी श्रेणी थी, जो सांसारिक धंधों से पृथक् रहकर धर्म-कार्यों में संलग्न रहती थी, पर समय की गति से इस समय बहुत से ब्राह्मण त्याग, तपस्या और निरीह जीवन को त्याग चुके थे। इन धर्मों के प्रभुत्व के फलस्वरूप श्रमणों की जो नई श्रेणी संगठित हो गई थी वह त्याग
और तपस्या से जीवन व्यतीत करती थी, और मनुष्य मात्र का कल्याण करने में रत रहती थी। जनता ने ब्राह्मणों की जगह अब इनको आदर देना और इनके उपदेशों के अनुसार जीवन व्यतीत करना शुरू किया। बौद्ध धर्म के प्रचार का यही अभिप्राय है। जनता ने पुराने धर्म का सर्वथा परित्याग कर कोई सर्वथा नया धर्म अपना लिया हो, सो बात भारत के इतिहास में नहीं हुई। बिम्बिसार, अजातशत्रु, उदायी, महापद्मनन्द और चन्द्रगुप्त मौर्य- जैसे मगध सम्राट जैन-मुनियों, बौद्ध-भिक्षुओं और ब्राह्मणों का समान रूप से आदर करते थे। जैन साहित्य के अनुसार ये जैन थे, उन्होंने जैन मुनियों का आदर किया और उन्हें बहुत सा दान दिया। बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार ये बौद्ध थे, भिक्षुओं का ये बहुत आदर करते थे, और इनकी सहायता पाकर बौद्ध संघ ने बड़ी उन्नति की थी। बौद्ध और जैन साहित्य इन सम्राट के साथ सम्बन्ध रखने वाली कथाओं से भरे पड़े हैं और इन सम्राटों का उल्लेख उसी प्रसंग में किया गया है, इन्होंने