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बौद्ध एवं जैन धर्म का भारतीय संस्कृति में योगदान
सुधा त्रिपाठी
भारत बहुत बड़ा देश है। प्रागैतिहासिक काल से भारत अनेकों जातियों और संस्कृतियों का आश्रय रहा है और उनकी विभिन्न प्रवृत्तियों तथा जीवन-विधाओं के संघर्ष और समन्वय के द्वारा भारतीय इतिहास की प्रगति
और संस्कृति का विकास हुआ है। इस विकास में आर्येत्तर जातियों का भी उतना ही योगदान रहा है जितना कि आर्य जाति का। आर्य एवं आर्येत्तर सांस्कृतिक परंपराओं का यह समन्वय भारतीय सभ्यता के निर्माण की आधार-शिला सिद्ध हुई। इसका प्रभाव एक ओर उत्तर वैदिक कालीन समाज रचना में स्पष्ट देखा जा सकता है, दूसरी ओर उस बौद्धिक और आध्यात्मिक आन्दोलन में जिसका चरम परिणाम बौद्ध एवं जैन धर्म का अभ्युदय था। __ ई० पू० छठी शताब्दी समस्त संसार में व्यापक धर्म सुधार का युग था। इस युग में अन्यान्य देशों के समाज में सामान्यतया आध्यात्मिक एवं नैतिक अशांति हो गयी तथा अद्वितीय बौद्धिक और चिन्तनपरक आन्दोलन आन्दोलित हुए। फलतः समस्त विश्व में विश्व सुधारकों का प्रादुर्भाव हुआ और उन्होंने तत्युगीन रूढ़िग्रस्त एवं आडम्बरपूर्ण व्यवस्था का, जिसने सामान्यजन के सामाजिक एवं धार्मिक जीवन को बोझिल बना दिया था, विरोध किया तथा इस व्यवस्था को नवीन आधारों पर पुनर्जीवित करने का प्रयास किया। डॉ० राधाकृष्णन् ने भी लिखा है कि छठी सदी ई० पू० कई देशों में आध्यात्मिक अशांति तथा बौद्धिक हलचल के लिए प्रसिद्ध हैं। चीन में लाओजू (Laotzu)