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जैनाचार्यों की प्रेरणा से जीवों के कल्याण
हेतु अकबर द्वारा जारी फरमान
सतीशचन्द यादव
मुगल शासन काल में 'नसीर अल-दीन हुमायूं' (1530-1556) का पुत्र 'जलाल अल-दीन मुहम्मद अकबर' (1556-1605) अपने राजनैतिक एवं धार्मिक कृत्यों से इतिहास में सर्वोपरि है।
साहित्यिक स्रोतों से ज्ञात होता है कि एक दिन बादशाह अकबर राजमहल में बैठकर अपने मंत्रियों से विचार-विमर्श कर रहा था कि उसी समय आचार्य श्री हीरविजयसूरिजी की जय हो.........का नारा लगाता हुआ एक भव्य जुलूस निकला। अकबर ने आश्चर्य से लोडरमल से इस बारे में पूछा तो उसे जवाब मिला कि उक्त जूलूस जैन धर्म से सम्बन्धित है जिसमें 'चम्पा' नामक श्राविका सुन्दर वस्त्र धारण कर पालकी में सवार होकर भगवान तीर्थंकर के दर्शन हेतु मंदिर जा रही हैं। वह विगत 6 महीने से उपवास पर हैं जिसनें गर्म जल पीनें के सिवाय कुछ भी नहीं लिया है, वह भी दिन में केवल 5 बार ही।
टोडरमल की बात सुनकर बादशाह घबरा गया तथा मंत्रियों को आदेश दिया कि पालकी को दरबार में पेश किया जाये। बादशाह की आज्ञा से जैन समुदाय भी भयभीत हो गया। तत्पश्चात् पालकी सहित श्राविका को दरबार में लाया गया। उक्त श्राविका से अकबर ने पूछा कि - तुम इतनी कठोर तपस्या क्यों कर रही हो, तत्पश्चात् श्राविका ने सहर्ष उत्तर दिया कि आत्म कल्याण के लिए व आत्मज्ञानी प० पू० आचार्य श्री हीरविजयसूरिजी म. सा. के अनुग्रह