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बौद्ध धर्म की अमूल्य धरोहर : अजंता
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आया। उसने कुछ समय पुलकेशी के राज्य के पूर्वी सीमा पर स्थित अजन्ता के शैलगृहों में भी बिताया था । उसका अजन्ता वर्णन यथातथ्य है। अभिलेखीय साक्ष्य से स्पष्ट है कि अजन्ता के शैलगृहों के अलंकरण का कार्य चालुक्य काल में भी जारी था । अजन्ता के शैलगृहों के निर्माण एवं चित्रण का कार्य राष्ट्रकूट काल के पूर्व ही समाप्त हो चुका था । अजन्ता के सभी शैलगृह स्थापत्य, शिल्प तथा चित्रकला की दृष्टि से बौद्ध धर्म से सम्बन्धित हैं। चुल्लवग्ग के अनुसार भिक्षुओं के लिए जिन पांच प्रकार के निवास स्थानों का विधान तथागत ने किया था उनमें अंतिम गुहायें थीं ।
अजन्ता की सभी गुफायें चित्रों से अलंकृत थीं। ये गुफायें दो कालखण्डों में निर्मित एवं चित्रित हैं। गुफा संख्या - 9 तथा 10 में सातवाहन काल में तथा शेष गुफाओं में वाकाटक एवं वाकाटकोत्तर काल में चित्रों का निर्माण हुआ ।
फाओं की भित्तियां, छत तथा मूर्तियां सभी चित्रित थीं। इस समय केवल छः गुफाओं (संख्या एक, दो, नौ, दस, सोलह तथा सत्रह) में चित्रों के अवशेष दृष्टिगत होते हैं । अन्य गुफाओं में चित्रांकन के चित्र यहाँ वहाँ विद्यमान हैं। अजन्ता के चित्र धार्मिक आधार पर हीनयान और महायान में विभाजित हैं। गुफा संख्या नौ और दस चित्र हीनयान परम्परा से अनुप्राणित हैं जिनमें बौद्ध मान्यता के अनुसार भगवान बुद्ध की उपस्थिति प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त की गयी है। शेष गुफाओं के चित्र महायान परम्परा के अनुरूप हैं जिनमें हम भगवान बुद्ध को मनुष्य रूप में अंकित पाते हैं। गुफा संख्या दस का निर्माण काल अभिलेखीय आधार पर ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी तथा संख्या नौ का ईसा पूर्व पहली शताब्दी माना गया है। किन्तु दोनों का चित्रांकन एक ही काल में हुआ है। जैसा कि चित्रों की शैली तथा रंगविन्यास और आकृत योजना से स्पष्ट है। गुफा सं० 16 और 17 वाकाटक काल में बनायी गयी थीं। इस काल में अजन्ता की चित्रकला अपनी चरम विकासावस्था पर पहुंच गयी थी। गुफा संख्या एक के चित्र इसी अवस्था के हैं। गुफा संख्या दो के कुछ चित्र इस परम्परा में रखे जा सकते हैं। किन्तु अधिकांश चित्र तकनीकी तथा अभिव्यंजना दृष्टि से ही हैं। इस गुफा के चित्रों में अलंकरण तथा पारंपरिकता का दर्शन अधिक होता है। यह अत्यन्त खेदजनक है कि इन अनुपम और अमूल्य चित्रों को नष्ट करने में प्रकृति की अपेक्षा मानव का हाथ अधिक रहा है । आधुनिक