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बौद्ध धर्म की अमूल्य धरोहर : अजंता शताब्दियों तक निर्बाध रूप से चलता रहा। इसके पश्चात् लगभग तीन शतकों के सुदीर्घ व्यवधान के अनंतर वाकाटक काल में ईस्वी पांचवी शताब्दी के उत्तरार्द्ध में ये काम एक नवीन उत्साह के साथ पुनः हाथ में लिया गया और छठी शताब्दी के अंत में अथवा सातवीं सदी के आरम्भ भाग में पूर्ण हुआ। यह कलामण्डप बौद्ध वास्तु, मूर्ति और चित्रकलाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। चित्रकला की उत्कृष्टता के कारण अजन्ता की गुफाओं का अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व है। इन शैल गहाओं की दीवारों, स्तम्भों और छतों पर भगवान बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित घटनाओं और जातक कथाओं के चित्र अंकित हैं। इन भित्तिचित्रों का धार्मिक महत्त्व तो है ही साथ ही कलात्मकता की दृष्टि से ये भित्तिचित्र बेजोड़ हैं। भारतीय कला.का गौरव विश्व प्रसिद्ध अजन्ता की गुफायें लगभग 1200 वर्षों तक अंधकार के गर्त में थीं। कुछ अंग्रेज अधिकारियों ने भारत की इस समृद्ध कला परम्परा से विश्व को परिचित कराया। उपलब्ध प्रमाणों के अनुसार सर्वप्रथम 1819 ई० में मद्रास रेजीमेण्ट के कुछ अधिकारियों का ध्यान इन गुफाओं की ओर गया। स्थानीय परम्परा के अनुसार कुछ ब्रिटिश सैनिक अधिकारी दक्खिन से उत्तर की ओर जाते हुए अजन्ता घाट से होकर गुजरे। उनमें से शिकार में रूचि रखने वाले एक अधिकारी ने ग्रामवासियों से बाघों के सम्भावित आश्रय के विषय में पूछा। एक चरवाहा उसे बाघों का घर दिखाता हुआ गुफाओं के सामने घाटी के दूसरी ओर ले गया। वहाँ से उस अधिकारी को शैल गृह संख्या - 10 का अग्रभाग दिखाई दे गया। अग्र भाग पर नक्काशी के काम से आकृष्ट होकर वह गुफा में गया और इस प्रकार अजन्ता की विस्मृत गौरवमयी कला सम्पदा पुनः प्रकाश में आयीं। 1819 ई० में शैलगृहों की खोज के पश्चात् इनकी सर्वप्रथम चर्चा विलियम एस्र्किन ने 1822 ई० में बाम्बे लिटरैरी सोसाइटी के विवरण में की। 1824 ई० में लेफ्टिनेंट एस्र्किन ने 1822 ई० में बाम्बे लिटरैरी सोसाइटी के विवरण में की। 1824 ई० में लेफ्टिनेंट जेम्स ई० अलेक्जेंडर ने इन गुफाओं की यात्रा की और उनका तथा उनके भित्तिचित्रों का संक्षिप्त विवरण रायल एशियाटिक सोसाइटी, लंदन को भेजा जो 1829 में प्रकाशित हुआ। 1828 ई० में कैप्टन ग्रैसले और राल्फ वहाँ गये और राल्फ द्वारा प्रस्तुत भित्तिचित्रों का सजीव वर्णन बंगाल एशियाटिक सोसाइटी की पत्रिका में प्रकाशित हुआ। जेम्स फर्ग्युसन ने 1839 में इन गुफाओं का निरीक्षण