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श्रमण-संस्कृति की पूजा का भी प्रचलन ज्ञात होता है। शुंगों के समय में सर्वास्तिवादी, महासांधिक आदि सम्प्रदाय बहुत उन्नति पर थे। डॉ० अजय मित्र शास्त्री के अनुसार अशोक के समय में ही बौद्धों के अट्ठारह सम्प्रदाय हो चुके थे। शंगकाल में इनका प्रभाव स्वाभाविक था। बौद्ध धर्म की ही तरह जैन धर्म भी इस समय विकसित हो रहा था। कलिंग नरेश खारवेल परम जैनी था। उसने उदयगिरि पर जैन भिक्षुओं ने निवास के लिए एक विशाल गुहा का निर्माण कराया था। इस काल में उज्जैन तथा मथुरा जैन धर्म के प्रधान केन्द्र थे। उज्जैनाधिपति गर्दभिल्ल जैन धर्म का अनुयायी था। इसी प्रकार मथुरा के जैन संघ अपना स्वतंत्र संगठन बनाकर जैनमत का प्रचार करते थे। बौद्धों की तरह ये स्तूपों का निर्माण करते थे तथा उनकी पूजा भी करते थे। इस परम्परा में एक जैनमूर्ति का निर्माण मगध में हुआ, जिसे कलिंग नरेश खारवेल उठाकर अपनी राजधानी ले गया।"
इस प्रकार ज्ञात होता है कि यद्यपि शुंगकाल में भागवत धर्म का प्रभुत्व था, तथापि अनेक स्थानों पर जैन धर्म के प्रसिद्ध केन्द्र थे। खारवेल का हाथी गुफा अभिलेख2 'नमो अरहतान' से प्रारम्भ होता है। उसकी पटरानी के मंचपुरी मुहालेख से विदित होता है कि उदयगिरि की पहाड़ियों पर कलिंग देश के जैन भिक्षुओं के लिए गुहाओं का निर्माण कराया गया था। अभिलेख से प्रमाणित होता है कि ईस्वी सन् के आरम्भ से मथुरा में जैन धर्म का अधिक प्रचार हुआ। मथुरा के कंकाली टीला तथा अन्य स्थलों से बहुसंख्यक जैन प्रतिमाएं मिली हैं। मथुरा के आयागपट्ट तथा जैनमूर्ति लेख प्रायः नमो अरहतो वर्धमानस से प्रारम्भ होते हैं। रूद्रदामा के जूनागढ़ अभिलेख में जरामरण से युक्त होकर कैवल्य ज्ञान प्राप्त करने का उल्लेख है।''
___ इसी क्रम में इक्क्षवाकुवंशी-नरेश श्री वीर पुरुष दत्त का नागार्जुनी कोण्ड अभिलेख (वर्ष 18) विवेच्य काल खण्ड का एक ऐसा अभिलेख है जिसमें एक ही परिवार में बौद्ध तथा ब्राह्मण धर्म दोनों को समान रूप से प्रतिष्ठित दिखाया गया है। वीर पुरुष दत्त के पिता श्री चन्तिमूल जहाँ एक और अग्निष्टोम, अग्निहोत्र, वाजपेय, अश्वमेध यज्ञों को सम्पादित कर रहे हैं, साथ ही हिरण्य, शतसहस्र गाय, शतसहस्र हल भी प्रदान कर रहे हैं, (हल प्रदान